राज्य-शहर ई पेपर व्यूज़- विचार

गांधी और गोडसे की बहस

संयोग देखिए कि जिन दिनों मीनाक्षी शेषाद्रि अमेरिका से लौट कर बॉलीवुड में फिर से काम तलाश रही हैं तभी दस साल के लंबे अंतराल के बाद निर्देशक राजकुमार संतोषी की भी एक फिल्म रिलीज़ होने वाली है। कभी इन दोनों की नजदीकी बॉलीवुड में काफी चर्चित रही थी। ‘घायल’, ‘घातक’, ‘दामिनी’ और ‘अंदाज़ अपना अपना’ बनाने वाले राजकुमार संतोषी की पिछली फिल्म थी ‘फटा पोस्टर निकला हीरो’ जो 2013 में आई थी और बुरी तरह पिटी थी। इसके बाद वे गायब हो गए थे, क्योंकि उससे पहले भी उनकी कई फिल्में फ्लॉप हो चुकी थीं। अब वे ‘गांधी गोडसे एक युद्ध’ लेकर आ रहे हैं। हम जिस माहौल की चर्चा कर रहे थे उसमें यह नाम निश्चित रूप से ध्यान खींचेगा, बल्कि चौंकाएगा।

बताया जाता है कि इसमें महात्मा गांधी और नाथूराम गोडसे तो हैं, लेकिन उनके समय के घटनाक्रम में कुछ काल्पनिक चीजें जोड़ी गई हैं। मसलन गोडसे के हमले में गांधी बच जाते हैं। बाद में वे जेल में बंद गोडसे से मिलने जाते हैं और उनके बीच तीखी बहसें होती हैं। यही उनका युद्ध है, यानी उनके विचारों का युद्ध, जो कि अभी भी चल रहा है। महात्मा गांधी की भूमिका दीपक अंतानी ने की है जबकि गोडसे बने हैं चिन्मय मंडलेकर। फिल्म में गांधी कहते हैं ‘अगर इस संसार को बचाना है, मानवता को बचाना है तो हर हालत में हिंसा को छोड़ना होगा।‘ इस पर गोडसे का जवाब है कि ‘आपके पास एक बहुत खतरनाक हथियार है। आमरण अनशन, जिसका इस्तेमाल करके आप लोगों से अपनी बात मनवाते हैं। यह भी एक तरह की हिंसा है, मानसिक हिंसा।’ फिल्म का टीज़र कहता है कि गांधी की हत्या कर दी गई और गोडसे की आवाज दबा दी गई। समय ने उन्हें अपनी बात कहने का मौका नहीं दिया। टीज़र में दावा किया गया है कि यह फिल्म उन्हें यह मौकै दे रही है।

आप कह सकते हैं कि राजकुमार संतोषी ने काफी जोखिम भरा विषय चुना है। लेकिन किसी फिल्म को लेकर कोई भविष्यवाणी नहीं की जा सकती। हो सकता है कि महात्मा गांधी और गोडसे दोनों के अनुयायियों को यह फिल्म पसंद आए। यह भी संभव है कि दोनों को ही इस पर ऐतराज़ हो या किसी एक ही पक्ष को इसमें खोट दिखे। जो भी हो, मामला जितना रिस्की है उतना ही दिलचस्प भी। राजकुमार संतोषी की बेटी तनीषा भी इसमें दिखेंगी। इस तरह संतोषी परिवार की तीसरी पीढ़ी फिल्मों में उतरेगी। राजकुमार संतोषी के पिता पीएल संतोषी, जिनका वास्तविक नाम प्यारेलाल श्रीवास्तव था, हिंदी फिल्मों के खासे प्रतिष्ठित गीतकार, लेखक और निर्देशक थे। आज़ादी से एक साल पहले 1946 में आई ‘हम एक हैं’ का निर्देशन उन्हीं ने किया था। यह देव आनंद की पहली फिल्म थी और इसका विषय था हिंदू-मुस्लिम एकता। कैसी अजीब बात है, इतने समय बाद भी इस विषय की धार अभी खत्म नहीं हुई है।

Tags :

By सुशील कुमार सिंह

वरिष्ठ पत्रकार। जनसत्ता, हिंदी इंडिया टूडे आदि के लंबे पत्रकारिता अनुभव के बाद फिलहाल एक साप्ताहित पत्रिका का संपादन और लेखन।

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *