दिल्ली में राष्ट्रीय राजमार्ग 48 के रंगपुरी से रजोकरी के बीच के हिस्से को बंद करने की खबर है। ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ ने इस खबर का शीर्षक ‘नाईटमेयर एनएच 48’ (एनएच 48 का दुस्वप्न)’दिया। हां, दिल्ली से गुरूग्राम आने-जाने वालों के लिए अगले 90 दिन बुरे सपने जैसे। दिल्ली ट्रैफिक पुलिस का फैसला इसलिए है क्योंकि द्वारका एक्सप्रेसवे प्रोजेक्ट का एक फ्लाईओवर और दो अंडरपास बन रहे है। द्वारका एक्सप्रेसवे से, दिल्ली और गुडगाँव को जोड़ने वाला एक वैकल्पिक रास्ता मिलेगा। सो विकास के खातिर कुछ दिन तकलीफ! पर तकलीफ? उसका क्या अनुमान संभव है?
इसी दिल्ली-गुरूग्राम रास्ते के अनवरत विकास में तकलीफ का क्या एक भी दफा पूरा खात्मा हुआ? ट्रैफिक के रूकने, रेंगने या रोक देने से किस तरह की परेशानियाँ हुई है, होती आई है हो रही हैं, मैं भी भुक्तभोगी हूँ क्योंकि मैं इस रूट पर नियमित रूप से सफ़र करती हूँ। गाड़ियों की रेलमपेल और आपाधापी के बीच आवाजाही एक सिरदर्द बन गई है। पर तो क्या? क्या ऐसा नहीं कहते कि दुस्वप्न के बाद कुछ अच्छा होता है! आमीन।
हम मिलेनियल जनरेशन वाले, कन्स्ट्रकशन और निर्माणको पूरे देश में देख रहे है। निर्माण ही निर्माण। पुराने भारत में लगातार नया भारत आकार लेता हुआ। जिधर देखों उधर नई इमारते बन रही है। सडकें, राष्ट्रीय राजमार्ग, नेशनल एक्सप्रेसवे बन रहे हैं। राजधानी एक्सप्रेस की जगह वन्देभारत ट्रेनें पटरियों पर दौड़ने लगी हैं और टियर 2 और टियर 3 शहरों में ‘अंतर्राष्ट्रीय हवाईअड्डे’ उग आए हैं। देश के अलग-अलग हिस्सों को जोड़ने वाले नेटवर्क का पुनरुद्धार हो रहा है, उसे आधुनिक बनाया जा रहा है। हाँ, भारत बदल रहा है।
बताया जाता है कि देश में राष्ट्रीय राजमार्ग हर साल 10,000 किलोमीटर और लम्बे हो रहे हैं। ग्रामीण सड़कों की कुल लम्बाई 2014 में 3,81,000 किमी से बढकर इस साल 7.29,000 किमी हो गयी है।
हाल में प्रस्तुत केंद्रीय बजट में सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के लिए धन का आवंटन 36 प्रतिशत बढ़ा है ताकि 25,000 किमी लम्बे नए राष्ट्रीय राजमार्ग बनाने के लक्ष्य को हासिल किया जा सके। इसी तरह, भारतीय रेलवे को रुपये 2.4 लाख करोड़ पूंजीगत निवेश परिव्यय (कैपिटल आउटले) के रूप में आवंटित किये गए हैं, जो इतिहास में सबसे ज्यादा है।
अगले तीन सालों में मोदी सरकार 500 और वन्देभारत ट्रेनें चलाने जा रही है। जापान की मदद से विद्युतीकृत रेल लाइनें बिछाई जा रहीं हैं जिन पर रेलगाड़ियाँ हवा की रफ़्तार से दौड़ेगीं। मालगाड़ियों की गति बढ़ाने के लिए मुंबई-अहमदाबाद, मुंबई-दिल्ली और पंजाब-पश्चिम बंगाल फ्रेट कॉरिडोर बनाये जा रहे हैं।
भारत नए वित्तिय वर्ष में परिवहन इंफ्रास्ट्रक्चर पर जीडीपी का 1.7 प्रतिशत खर्च करेगा, जो अमरीका और अधिकांश यूरोपीय देशों की तुलना में लगभग दोगुना है। निश्चित रूप से यह मोदी सरकार की एक बड़ी उपलब्धि है।एक पत्रिका की माने तो यह इसलिए संभव है क्योंकि मोदीजी के पूर्ववर्तियों ने जो मज़बूत नींव डाली थी, वह उन्हें विरासत में प्राप्त हुई है।अटलबिहारी वाजपेयी ने 1998 में राष्ट्रीय राजमार्ग विकास परियोजना की शुरुआत की थी। उसकी देन है स्वर्णिम चतुर्भुज और उत्तर-दक्षिण और पूर्व-पश्चिम गलियारे। उनके बाद के प्रधानमंत्री डा मनमोहन सिंह ने न केवल इन परियोजनाओं को चलाए रखा बल्कि माल ढुलाई कॉरिडोर सहित कई नए प्रोजेक्ट भी शुरू किए।
निसंदेंह मौजूदा सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी की कमान नतीजों वाली है। निर्णय व क्रियान्वयन मेंउनकी फुर्ती और निगरानी में हुई इंफ्रास्ट्रक्चरप्रगति मोदी सरकार की सबसे ज्यादा नजर आने वाली उपलब्धि है।
परन्तु क्या देश को जोड़ने, बदलने वाली इन भारी-भरकम परियोजनाओं से आम लोगों के कष्ट कम हुए या होंगें? क्या सड़कों और रेललाईनों में हो रहे निवेश का लाभ हमें और आपको, आम लोगों को होगा? क्या इस धमाधम से सरकारी खजाने में निवेशित पूंजी के अनुपात में सिक्कों की छनछनाहट तेज होगी? क्या इस सत्य की अनदेखी करें कि इतने सालों के बाद भी ताजएक्सप्रेसवे खाली मिलता है। क्या ऐसे प्रोजेक्ट (दिल्ली-लखनऊ, दिल्ली-वडोदरा, बुंदेलखंड, ईस्टर्न एक्सप्रेसवे तीस-चालीस सालों में भी रिटर्न पा सकेंगे? भूले नहीं कि टोल टैक्स या रेल भाड़ा या माल भाड़ा या बिजली के बिल आदि सब ऐसे मंहगे हुए है कि विकास आम आदमी की जेब की हैसियत से परे होता हुआ है। न टौल सस्ता है न ट्रेन के टिकट और न हवाई जहाज का भाड़ा। जबकि प्रधानमंत्री का वादा था कि हवाई चप्पल पहनने वालों को भी हवाई यात्रा करवाएंगे।
जो हो, दिल्ली-ग्रुरूग्राम की आवाजाही में बीस वर्षों से लगातार विकास और बावजूद इसके ट्रैफिक हमेशा रेंगता, ठहरा और जाम वाला। क्या लगता नहीं कि भारत में विकास उतना कभी नहीं फैल सकता जिस रफ्तार से आबादी फैलती है, फैली है और इसे पूरी सदी बढ़ेगी।तभी तो दिल्ली से जयपुर भलेनए एक्सप्रेसवे से केवल 3.5 घंटे दूर रह गया है! बावजूद इसके लोग पुराने ही हाईवे (जो कम टोल के कारण अब आम जनता का) के रेंगते ट्रैफिक से सफर कर रहे है और करेंगे। (कॉपीः अमरीश हरदेनिया)