इमरान खान बागी बने रहेंगे और देश को अराजकता की और ढकेलते रहेंगे। फौज अपनी पुरानी तरकीबें इस्तेमाल कर चुनाव स्थगित करवा देगी। यह भी हो सकता है कि लोगों का ध्यान बंटाने के लिए कश्मीर में कुछ बड़ा किया जाए।
पड़ोसी पाकिस्तान बुरे दौर से गुजर रहा है। इमरान खान के कारण पैदा राजनैतिक संकट बढ़ रहा है। वे अपने समर्थकों को उन्मादी भीड़ में बदल रहे हैं और अपने दीवानों को ढाल बनाकर गिरफ्तार करने आई पुलिस को खाली हाथ लौटाया है। इतना ही नहीं शुक्रवार को हाईकोर्ट ने उनका गैर-जमानती वारंट रद्द किया शनिवार को सीधे कोर्ट में पेश होने की सहूलियत दे कर। यह इमरान की जीत या हार? शहबाज शरीफ के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार हैरान-परेशान है। यहां तक कि सेना, जो पाकिस्तान की राजनीति में हमेशा से अहम रही है, भी घबराकर बैकफुट पर आ गई है। सरकार और सेना को डर है कि इमरान को हिरासत में लेने से जनाक्रोश का जो विस्फोट होगा उसे संभालना बहुत मुश्किल होगा।
पाकिस्तान के सियासी हालातों के लिए इमरान खान काफी हद तक जिम्मेदार हैं। प्रधानमंत्री पद से हटने के बाद से इस सम्मोहक और लोकप्रिय नेता का व्यवहार अत्यंत गैर-जिम्मेदाराना और मनमाना रहा है। पुलिस अदालती वारंट के बाद उन्हे गिरफ्तार करने गई थी। लेकिन उन्होने अपने समर्थकों का उकसाया। खान ने ट्विटर पर कहा, ‘‘अगर मुझे कुछ हो जाता है – अगर मुझे जेल में डाल दिया जाता है या वे मेरी जान ले लेते हैं – तो आपको लड़ाई जारी रखना होगी।
सो उनके घर के बाहर समर्थकों ने इकठ्ठे हो कर पुलिस पर पत्थरबाज़ी की, लाठियां चलाईं और यहां तक कि आग सुलगाने वाले बम भी फेंके।इमरान लोगों को यह समझाने में सफल रहे हैं कि सेना का देश के राजकाज में हस्तक्षेप अशुभ और अनुचित है।फौज, जो एक समय इतनी ताकतवर थी कि उसके हस्तक्षेप को राजनीतिज्ञ चुपचाप झेलते रहते थे, अचानक कमजोर नजर आ रही है। उसका रूआब, उसका जनाधार और स्वीकार्यता – तीनों कम हुए हैं, विशेषकर पंजाब में, जो पाकिस्तान का सबसे बड़ी आबादी वाला प्रांत है और जहां से सबसे बड़ी संख्या में सेना में जवानों और अफसरों की भर्ती होती है।
कह सकते हैं कि पाकिस्तान में बगावत के हालात बन रहे हैं और लोगों में जिस तरह का गुस्सा दिख रहा है – विशेषकर सेना के प्रति – उससे देश में आमूलचूल परिवर्तन आ सकता है। कुछ लोग कहते हैं कि पाकिस्तान एक तरह के पुनर्जागरण के मुहाने पर है, जिससे वह एक प्रजातांत्रिक देश के रूप में उभरेगा।
परंतु क्या इमरान खान इस परिवर्तन के वाहक हो सकते हैं?
इसमें कोई संदेह नहीं कि वे लोगों की पहली पसंद होते हुए हैं परंतु उनमें उस दृष्टि और योग्यता का अभाव है जिससे पाकिस्तान वापस पटरी पर आ सके। उनका लक्ष्य केवल प्रधानमंत्री बनना है भले ही वे देश के मलबे पर खड़े होकर गद्दी तक पहुंचे। उन्होंने अब तक यह नहीं बताया है कि बर्बाद हो चुकी अर्थव्यवस्था को वे कैसे सुधारेंगे? पाकिस्तान जल्द ही अपने कर्जों और देयताओं को अदा न कर पाने की स्थिति में होगा। विदेशी मुद्रा कोष में केवल 3 बिलियन डॉलर बचे हैं, लाखों भुखमरी की कगार पर हैं और हजारों अपनी नौकरियां खो चुके हैं। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने पाकिस्तान को बेलआउट पैकेज देने से इंकार कर दिया है क्योंकि उसे यह भरोसा नहीं है कि वित्त मंत्री आर्थिक सुधार लागू कर पाएंगे। देश में मुख्यतः इमरान खान के कारण व्याप्त राजनैतिक अस्थिरता भी उसे नहीं भा रही है। सुरक्षा के मोर्चे पर भी हालात खराब हैं। पुलिस मुख्यालय पर कई जानलेवा हमले हो चुके हैं जिनके लिए पाकिस्तानी तालिबान को जिम्मेदार बताया जा रहा है।
कुल मिलाकर पाकिस्तान में हाहाकार मचा हुआ है। इमरान खान बागी बने रहेंगे और देश को अराजकता की और ढकेलते रहेंगे। फौज अपनी पुरानी तरकीबें इस्तेमाल कर चुनाव स्थगित करवा देगी। यह भी हो सकता है कि लोगों का ध्यान बंटाने के लिए कश्मीर में कुछ बड़ा किया जाए। जो भी हो सरहद के उस पार से आ रही खबरें अच्छी नहीं हैं। भारत को सावधान रहना होगा। (अनुवाद: अमरीश हरदेनिया)