राज्य-शहर ई पेपर व्यूज़- विचार

टूटती सहमतियां, बंटती धारणाएं

प्रधानमंत्री ने 28 मई के दिन को गर्व का दिवस बताया, वहीं विपक्षी नेताओं ने इसका चित्रण लोकतंत्र के अभाव की पुष्टि करने वाले दिन के रूप में किया। कुछ टिप्पणियों में इन घटनाओं को लोक और तंत्र के पूरे संबंध विच्छेद का प्रतीक बताया गया।

नई दिल्ली रविवार को दो तरह की कहानियां का गवाह बना। एक तरफ भव्यता और कुछ बड़ा हासिल कर लेने के गर्व का नजारा था। तो वहीं सड़कों पर कभी पूरे देश के गर्व का कारण बने चेहरे पुलिस के डंडों के तले जमीन पर लेटे और फिर पुलिस की हिरासत में नजर आए। यौन शोषण की घटनाओं की प्रभावी जांच कराने की अंतरराष्ट्रीय ख्याति के इन पहलवानों की मांग के प्रति सवा महीने से जारी बेरहमी रविवार को उनके खिलाफ राजसत्ता की हिंसा में तब्दील हो गई। जब उन्हें नहीं बख्शा गया, तो उनके समर्थन में आए लोग राजसत्ता से किसी अलग प्रकार के व्यवहार की उम्मीद नहीं कर सकते थे। उधर जहां नए संसद भवन के उद्घाटन का जोश उमड़ रहा था, तभी उसका बहिष्कार करने वाले छोटे-बड़े 20 राजनीतिक दलों के दायरे में इस बात का अफसोस था कि नए भवन की निर्माण प्रक्रिया से उन्हें आरंभ से ही बाहर रखा गया। सरकार ने उन दलों से संवाद और परामर्श की औपचारिकता तक नहीं निभाई। तो जहां प्रधानमंत्री ने 28 मई के दिन को गर्व का दिवस बताया, वहीं विपक्षी नेताओं ने इसका चित्रण लोकतंत्र के अभाव की पुष्टि करने वाले दिन के रूप में किया।

कुछ टिप्पणियों में रविवार की घटनाओं को लोक और तंत्र के पूरे संबंध विच्छेद का प्रतीक बताया गया। अगर इसके साथ यह भी याद कर लिया जाए कि एक दिन पहले यानी शनिवार को हुई नीति आयोग की बैठक में विरोध जताने के लिए 11 राज्यों के मुख्यमंत्री शामिल नहीं हुए, तो ये सारा घटनाक्रम देश में संवाद और सहमतियों के बिखरने की गवाही देता है। यह अवश्य याद रखना चाहिए कि संवाद से अधिकतम सहमति हासिल करने की प्रक्रिया किसी राजनीतिक व्यवस्था के टिकाऊ होने की प्रथम शर्त होती है। ऐसा होने पर ही पूरी आबादी की निगाह में वह व्यवस्था वैध बनी रहती है। असंतोष और सिस्टम में अपने लिए जगह ना होने का भाव गहराता चला जाए, तो समाज में एक ऐसी दीर्घकालिक समस्या की जड़ पड़ जाती है, तो बेहद हानिकारक होती है। क्या हम उस मुकाम की तरफ जा रहे हैं?

By NI Editorial

The Nayaindia editorial desk offers a platform for thought-provoking opinions, featuring news and articles rooted in the unique perspectives of its authors.

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *