श्रीलंका में आईएमएफ का नुस्खा अब एक बड़ी उथल-पुथल वजह बन रहा है। ट्रेड यूनियनों ने चेतावनी दे दी है कि रानिल विक्रमसिंघे की सरकार अगर आंख मूंद कर आईएमएफ की शर्तों को लागू करती रही, तो ऐसा वह अपने लिए जोखिम उठाने की कीमत पर ही करेगी। जन विरोध की नई लहर के तहत ट्रेड यूनियनों ने मंगलवार आधी रात से सारे देश को ठप कर दिया है। इन यूनियनों के अह्वान पर आईएमएफ के दबाव में उठाए गए कदमों के विरोध में बिजली एवं ऊर्जा, मेडिकल, बैंकिंग और कई अन्य प्रमुख सेवाओं के कर्मचारी हड़ताल पर चले गए हैं।
ट्रेड यूनियनों के साझा मंच- समागी ट्रेड यूनियन कलेक्टिव ने कहा है कि अगर इनकम टैक्स में बढ़ोतरी को वापस नहीं लेती है और बिजली शुल्क समेत अन्य करों में कटौती नहीं करती है, तो ट्रेड यूनियनें इस सरकार का “भविष्य तय” कर देंगी। ट्रेड यूनियनों ने आरोप लगाया है कि विक्रमसिंघे सरकार आईएमएफ के दबाव में सिलोन इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड को बेचने की तैयारी कर रही है, जबकि अब यह सार्वजनिक क्षेत्र की यह कंपनी मुनाफे में आ चुकी है।
विक्रमसिंघे सरकार ने आईएमएफ की शर्तों के मुताबिक इनकम टैक्स की दर बढ़ा कर 36 प्रतिशत कर दी है। उधर बिजली शुल्क में भारी बढ़ोतरी की गई है। इससे पहले से ही परेशान जनता का जीना और मुहाल हो गया है। अब श्रमिक संगठन इसके खिलाफ बागी मुद्रा में दिख रहे हैं। दरअसल मेडिकल डॉक्टर पहले से ही कई प्रांतों में आंदोलन पर हैं और इस कारण देश का पूरा हेल्थ सेक्टर लगभग ठप हो गया है। इससे मरीजों को भारी दिक्कत हो रही है। अब ये डॉक्टर भी राष्ट्रव्यापी हड़ताल का हिस्सा बन गए हैँ।
बैंकों में सोमवार को ही हड़ताल जैसा माहौल बन चुका था। उधर विश्वविद्यालयों के साथ-साथ देश के 10 हजार से अधिक स्कूलों में भी अब पढ़ाई ठप होने के संकेत हैँ। ट्रेड यूनियनों ने इसे एक ऐतिहासिक मौका बताया है, जब देश का पूरा श्रमिक वर्ग एकजुट हो गया है। बेशक यह श्रीलंका सरकार के लिए ऐसी चुनौती है, जिससे निपटना उसके लिए आसान साबित नहीं होगा।