इन रोगों के काफी बड़े हिस्से का संबंध जीवन शैली से है। इस संबंध लोगों को जागरूक बनाना जरूरी है। वरना, इलाज की स्थितियां विकट हो जाएंगी- खासकर उस हाल में जब आउटडोर चिकित्सा अधिक से अधिक प्राइवेट सेक्टर के हाथ में जा रही है।
मशहूर ब्रिटिश हेल्थ जर्नल लांसेट ने बीते हफ्ते भारत में डायबिटीज मरीजों के बारे में जो अध्ययन रिपोर्ट छापी, वह चेतावनी की एक घंटी है। अगर तुरंत इस पर लोगों ने ध्यान नहीं दिया, तो भारत की हालत भी पाकिस्तान जैसी हो सकती है, जहां लगभग 27 प्रतिशत बालिग लोग इस रोग का शिकार हो चुके हैँ। लांसेट के मुताबिक भारत में फिलहाल डायबिटीज से पीड़ित मरीजों की संख्या 11 करोड़ से ज्यादा है। 2019 में यह संख्या लगभग सात करोड़ थी। यानी चार साल में तीन करोड़ मरीज बढ़ गए। अगर इस वृद्धि दर को देखें, तो भयावह है। लांसेट ने असल में इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) की शोध रिपोर्ट को प्रकाशित किया है। उसके मुताबिक कुछ राज्यों में डायबिटीज के मामले स्थिर हैं, तो वहीं कुछ राज्यों में मामले तेजी से बढ़े हैं। अधिक चिंता पैदा करने वाले आंकड़े प्री-डायबिटीज की अवस्था में पहुंच चुकी आबादी से संबंधित हैं। देश की 15.3 फीसदी या लगभग 13.6 करोड़ आबादी प्री-डायबिटीक हैं। यानी अगले कुछ सालों में ऐसे लोगों के डायबिटीज की चपेट में आने की ठोस आशंका है।
शोध में यह भी कहा गया है कि 35 प्रतिशत से अधिक आबादी हाइपरटेंशन (हाई ब्लड प्रेशर) और हाई कोलेस्ट्रॉल की शिकार है। देश की 28.6 फीसदी आबादी मोटापे से ग्रस्त है। ये सारी स्वास्थ्य स्थितियां एक दूसरे को बढ़ाने वाली होती हैं। इन सबका किसी व्यक्ति पर बहुत गंभीर असर होता है। ऐसे में इन रोगों की रोकथाम और इलाज के उपाय देश की प्राथमिकता बन जाने चाहिए। इन रोगों के काफी बड़े हिस्से का संबंध जीवन शैली से है। इस संबंध लोगों को जागरूक बनाना जरूरी है। वरना, इलाज की स्थितियां विकट हो जाएंगी- खासकर उस हाल में जब आउटडोर चिकित्सा अधिक से अधिक प्राइवेट सेक्टर के हाथ में जा रही है। इस सिलसिले में अध्ययन से सामने आया यह तथ्य भी अहम है कि प्री-डायबिटीज के मामले में लगभग ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों कोई अंतर नहीं दिखाई देता है। प्री-डायबिटीज का स्तर उन राज्यों में अधिक पाया गया, जहां डायबिटीज का पहले प्रसार कम था।