जिस युग में डेटा को सोना कहा जाता है, डेटा सुरक्षा के ऐसे हाल के साथ कोई भी देश सुरक्षित रहने और विकास मार्ग पर चलने को लेकर आश्वस्त नहीं हो सकता। सरकार को ताजा घटना का पूरा सच देश को बताना चाहिए।
कोविन एप के जरिए स्टोर हुए लोगों के निजी डेटा की हैकिंग पर सरकार ने जो बयान दिए हैं, उससे कहीं यह भरोसा नहीं बंधता की ऐसी घटना नहीं हुई है। सिर्फ यह कह देना पर्याप्त नहीं हो सकता कि सारा डेटा सुरक्षित है और इसमें सेंध लगने की खबरें शरारतपूर्ण हैँ। अगर ऐसा है, तो पहले एक मलयालम वेबसाइट और फिर कई अन्य समाचार माध्यमों में नेताओं और अन्य लोगों की निजी जानकारियों के स्क्रीन शॉट्स कैसे प्रकाशित हो गए? सूचना तकनीक मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने इस बारे में जो पहला बयान दिया, उससे स्थिति स्पष्ट होने के बजाय कई नए सवाल खड़े हो गए। इसलिए बेहतर होता कि कोरोना वैक्सीन लगवाने की अनिवार्य शर्त बना कर सरकार ने लोगों की जो निजी सूचनाएं ऐप के जरिए इकट्ठी की थीं, अगर हैकरों ने उसकी सुरक्षा तोड़ दी है, तो वह इस बात को स्वीकार करती। साथ ही इसकी व्यापक जांच शुरू करती, ताकि हैकरों तक पहुंचा जा सके। कुछ महीने पहले नई दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के सर्वर की भी हैकिंग हुई थी। तब हैकरों ने महत्त्वपूर्ण स्वास्थ्य डेटा चुरा लिए थे। उसकी जांच कहां पहुंची, यह आज तक सार्वजनिक नहीं की गई है।
दरअसल, भारत में डेटा सुरक्षा में सेंध लगने की सिर्फ यही दो घटनाएं नहीं हैँ। जिस युग में डेटा को सोना कहा जाता है, उस समय डेटा सुरक्षा के ऐसे हाल के साथ कोई भी देश सुरक्षित रहने और विकास मार्ग पर चलने को लेकर आश्वस्त नहीं हो सकता। अन्य सूचनाओं के साथ-साथ स्वास्थ्य संबंधी डेटा की भी बाजार में ऊंची कीमत है, इसलिए अपराधी हैकरों की नजर इन पर रहती है। यह सरकार और उन संस्थाओं की जिम्मेदारी है कि जिन लोगों का डेटा वे लेते हैं, उन्हें सुरक्षित रखें। भारत में सरकार और संस्थाएं इस जिम्मेदारी को निभाने में नाकाम नजर आ रही हैँ। महत्त्वपूर्ण प्रश्न यह भी है कि अगर इसी तरह सैन्य सुरक्षा और बुनियादी इंफ्रास्ट्रक्चर संबंधी आंकड़ों की चोरी कर ली गई, तो उसका क्या परिणाम होगा? इसलिए सरकार को ताजा घटना को अति गंभीरता से लेना चाहिए और इसका पूरा सच देश को बताना चाहिए।