राज्य-शहर ई पेपर व्यूज़- विचार

समस्या व्यवस्थागत है

भारत में डॉक्टरों के साथ हिंसक घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। मरीजों के परिजनों का गुस्सा अक्सर उन्हें झेलना पड़ता है। लेकिन हम अगर गौर करें, ज्यादातर मामलों की जड़ में ना तो डॉक्टरों की लापरवाही आएगी, ना परिजनों का असामाजिक व्यवहार। समस्या व्यवस्थागत है।     

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के अनुसार 75 फीसदी से अधिक डॉक्टरों ने कार्यस्थल पर किसी न किसी प्रकार की हिंसा का सामना किया है। ऐसे ज्यादातर मामलों में मरीज के परिजन शामिल थे। हालांकि स्वास्थ्य कर्मियों के प्रति कार्यस्थल पर होने वाली हिंसा को लेकर देश में कोई केंद्रीकृत डेटाबेस मौजूद नहीं है, लेकिन मीडिया रिपोर्टों से मालूम पड़ता है कि ऐसी घटनाएं लगातार बढ़ी हैं। इलाज की नाकामी की अवस्था में अक्सर मरीज के परिजन डॉक्टरों या अस्पताल की लापरवाही को दोषी मानते हैं। यानी सरकारी अस्पतालों में मेडिकल स्टाफ- विशेष रूप से जूनियर डॉक्टरों, मेडिकल इंटर्न और अंतिम वर्ष के मेडिकल छात्रों- को इसका खामियाजा भुगतना पड़ जाता है। डॉक्टर एसोसिएशनों ने इस समस्या से निपटने के लिए एक केंद्रीय कानून की मांग की है। दरअसल, अप्रैल 2020 में भारत में एक कानून बनाया गया था, जिसके तहत स्वास्थ्य देखभाल सेवा से जुड़े पेशेवरकर्मियों के खिलाफ हिंसा को एक संज्ञेय और गैर-जमानती अपराध बना दिया गया था। लेकिन कोरोना महामारी खत्म होने के साथ ही यह कानून खत्म हो गया।

कुछ राज्यों में ऐसे कानून हैं, लेकिन डॉक्टरों की शिकायत है कि वे कानून पूरी तरह से लागू नहीं किए गए हैं और साथ ही वे सुरक्षा के लिहाज से कारगर नहीं हैं। मगर स्वास्थ्य क्षेत्र के विशेषज्ञों की यह राय गौरतलब है कि समस्या को सिर्फ व्यक्तिगत स्तर पर देखना काफी नहीं है। बल्कि इसे देश की खराब सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था के संदर्भ में देखने की जरूरत है। सीमित संसाधन और कर्मचारियों की सीमित संख्या की वजह से गलत प्रबंधन इसका एक प्रमुख कारण है। निजी क्षेत्र में जरूर इलाज अनावश्यक रूप से अधिक महंगा है और ऐसी शिकायतें भी हैं कि निजी अस्पताल पैसा कमाने के लिए लंबे समय तक मरीजों को रोके रहते हैं। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक देश में 34 लाख ही रजिस्टर्ड नर्स हैं। वहीं 13 लाख अन्य स्वास्थ्यकर्मी हैं। जाहिर है, 1.4 अरब की आबादी वाले देश के लिए यह नाकाफी है। स्पष्ट है कि इस समस्या को बिना दूर किए कोई भी विशेष कानून प्रभावी नहीं हो पाएगा। उससे डॉक्टरों की अपेक्षा पूरी नहीं हो सकेगी।

Tags :

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *