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भरोसे का नया संकट

supreme court election commissioners

अपेक्षित है कि चयन से संबंधित पूरी प्रक्रिया पारदर्शी और ठोस रूप में मौजूद हो। उम्मीदवारों के करियर के बारे में पूरी सूचना चयन सदस्यों के पास मौजूद नहीं रहेगी, तो वे किस आधार पर उनके बारे में अपनी राय बनाएंगे?

जब नए निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति के लिए संबंधित समिति की बैठक होने जा रही है, समिति के एक सदस्य का उम्मीदवारों से संबंधित विवरण मांगना इस प्रक्रिया से जुड़ी कई समस्याओं की तरफ ध्यान खींचता है। खास ध्यान समिति के सदस्य अधीर रंजन चौधरी के इस सुझाव ने खींचा है कि निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति के लिए वही प्रक्रिया अपनाई जाए, जो मुख्य एवं अन्य सूचना आयुक्तों तथा मुख्य एवं अन्य सतर्कता आयुक्तों की नियुक्ति के लिए अपनाई जाती है। इसका अर्थ यह हुआ कि चौधरी के पत्र लिखने तक निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति की प्रक्रिया को ही ठोस रूप नहीं दिया गया था।

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चौधरी लोकसभा में सबसे बड़े दल- कांग्रेस का नेता होने के नाते नियुक्ति समिति में शामिल हैं। समिति के दो अन्य सदस्य प्रधानमंत्री और उनकी तरफ से नियुक्त एक केंद्रीय मंत्री हैं। इस तरह समिति में सत्ता पक्ष का बहुमत है और वह अपनी पसंद के व्यक्तियों की निर्वाचन आयोग में नियुक्ति करवाने में सक्षम है। इसके बावजूद यह अपेक्षित है कि चयन से संबंधित पूरी प्रक्रिया पारदर्शी और ठोस रूप में मौजूद हो।

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उम्मीदवारों के करियर के बारे में पूरी सूचना सभी सदस्यों के पास मौजूद नहीं रहेगी, तो वे किस आधार पर उनके बारे में अपनी राय बनाएंगे? क्या यह चयन प्रक्रिया के प्रति सरकार की लापरवाही को जाहिर नहीं करता कि चयन समिति के एक सदस्य को उम्मीदवारों का जीवन-परिचय मांगना पड़ा है? सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद संसदीय प्रस्ताव के जरिए निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति प्रक्रिया को बदल कर सरकार पहले ही इस बारे में काफी संदेह पैदा कर चुकी है।

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अब जो प्रक्रिया उसने स्थापित की है, उसको लेकर भी अगर वह अंगभीरता दिखाती है, तो निर्वाचन आयोग की साख के लिए यह अच्छी बात नहीं होगी। आयोग की साख पर पहले ही कई हलकों से गंभीर प्रश्न उठते रहे हैं। आम चुनाव से ठीक पहले एक आयुक्त के इस्तीफे को लेकर अभी भी रहस्य बना हुआ है। इस बीच अधीर रंजन चौधरी ने विधायी कार्य विभाग के सचिव को पत्र लिख कर जो मांग रखी है, उससे भरोसे का नया संकट पैदा हो गया है।

By NI Editorial

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