जनवरी- फरवरी में भारतीय स्टार्ट-अप्स सिर्फ 90 करोड़ डॉलर की फंडिंग जुटा पाए। इसे संकेत माना गया है कि लगातार दूसरे वर्ष स्टार्ट-अप्स क्षेत्र में निम्न निवेश होगा। 2023 में इस क्षेत्र में सिर्फ आठ अरब डॉलर का निवेश हुआ, जो छह साल का सबसे कम आंकड़ा है।
भारतीय अर्थव्यवस्था इस समय एक असामान्य विसंगति के दौर से गुजर रही है। एक तरफ शेयर बाजार चमक रहे हैं और सरकारी आंकड़ों के मुताबिक जीडीपी की ऊंची वृद्धि दर कायम है, वहीं निजी निवेश और आम उपभोग के साथ-साथ स्टार्ट-अप्स के लिए फंडिग में गिरावट का दौर भी लंबा खिंचता जा रहा है। अभी तीन साल पहले तक वेंचर निवेशक नए टेक स्टार्ट-अप्स में पैसा लगाने के लिए कतार में खड़े दिखते थे। लेकिन आज तस्वीर बदल चुकी है।
इस जनवरी और फरवरी में भारतीय स्टार्ट-अप्स सिर्फ 90 करोड़ डॉलर की फंडिंग जुटा पाए। इसे संकेत माना गया है कि लगातार दूसरे वर्ष स्टार्ट-अप्स क्षेत्र में निम्न निवेश होगा। 2023 में इस क्षेत्र में सिर्फ आठ अरब डॉलर का निवेश हुआ, जो छह साल का सबसे कम आंकड़ा है। 2022 और 2023 में इस क्षेत्र में कुल निवेश क्रमशः 36 और 24 बिलियन डॉलरों का हुआ था। आम समझ यह बनी है कि अब निवेशक भविष्य में संभव मुनाफे से कम और सामने ठोस आंकड़ों से अधिक आकर्षित हो रहे हैं।
भारत के तीन मशहूर स्टार्ट-अप्स- पेटीएम, बायजू और ओला कैब्स- का अनुभव अपेक्षा के मुताबिक नहीं रहा। इससे उन उद्यमों के प्रति निवेशकों का आकर्षण घटा है, जो आइडिया के रूप में संभावना पूर्ण लगते हैं, लेकिन जब बाजार की असल सूरत से मुकाबला होता है, तो उनकी संभावनाएं दम तोड़ने लगती हैँ। एक धारणा यह भी है कि स्टार्ट-अप्स क्षेत्र की गायब होती चमक के पीछे मुख्य कारण सकल वास्तविक (यानी उत्पादन-वितरण-उपभोग की) अर्थव्यवस्था की बिगड़ रही स्थिति है।
कोरोना महामारी और उसके ठीक बाद के दौर में जब असल अर्थव्यवस्था डगमग थी, तब नकदी से भरपूर निवेशकों ने स्टार्ट-अप्स पर बड़ा दांव लगाया। उस समय कई भारतीय स्टार्ट-अप्स दुनिया भर में चर्चित हुए। तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे अपनी सरकार की नीतियों की बड़ी सफलता बताते हुए स्टार्ट-अप्स को भारत की रीढ़ बताया था। लेकिन अब अब वह रीढ़ हिलती नजर आ रही है। सबक यह है कि अगर उपभोग की संभावनाएं मजबूत नहीं हो रही हों, तो सप्लाई साइड की सफलताएं क्षणिक ही होती हैं।