जयशंकर ने ना सिर्फ कनाडा को सख्त संदेश दिया, बल्कि अमेरिका को भी आईना दिखाने की कोशिश की। जयशंकर के भाषण ऐसी कई बातें आईं, जो अक्सर आजकल चीनी राजनयिकों के भाषणों में सुनने को मिलती हैं।
संयुक्त राष्ट्र में विदेश मंत्री एस जयशंकर के संबोधन का लब्बोलुआब संभवतः यह है कि भारत ने पश्चिमी देशों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। जयशंकर ने वहां से ना सिर्फ कनाडा को सख्त संदेश दिया, बल्कि अमेरिका को भी आईना दिखाने की कोशिश की। जयशंकर के भाषण ऐसी कई बातें आईं, जो अक्सर आजकल चीनी राजनयिकों के भाषणों में सुनने को मिलती हैं। मसलन, उन्होंने कहा कि अब वह दौर चला गया, जब कुछ देश दुनिया का एजेंडा तय कर देते थे। साथ ही उन्होंने नियम आधारित विश्व व्यवस्था के अमेरिकी कथानक पर भी कटाक्ष किया। उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय वार्ताओं में अक्सर नियम आधारित विश्व व्यवस्था की बात आती है। संयुक्त राष्ट्र घोषणापत्र का भी उल्लेख किया जाता है। लेकिन असल में कुछ ही देश हैं, जो एजेंडा तय करते हैं और नियमों को परिभाषित करते हैं। जयशंकर ने कहा- ‘यह अनिश्चितकाल तक चलते नहीं रह सकता। ना ही अब बिना किसी चुनौती के ऐसा चलता रहेगा।’ इसके साथ ही वैक्सीन भेदभाव, जयवायु परिवर्तन की ऐतिहासिक जिम्मेदारी और खाद्य एवं ऊर्जा को जरूरतमंद देशों के बजाय धनी देशों को भेजने के लिए बाजार की शक्ति के उपयोग का मुद्दा भी उठाया।
ये वो तमाम बातें हैं, जिन पर धनी देशों का विकासशील देशों के साथ पुराना टकराव रहा है। न्यूयॉर्क में हुए एक अन्य संवाद के दौरान जयशंकर ने कनाडा पर आतंकवाद की पनाहगाह होने का सीथा सीधा इल्जाम लगाया। “नियम बनाने वालों” पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा प्रादेशिक अखंडता और अन्य देशो के आंतरिक मामलों में अहस्तक्षेप की नीति को अपनी सुविधा के अनुसार लागू नहीं किया जा सकता। जयशंकर के इन बयानों का मतलब फिलहाल तो यही निकाला जाएगा कि कनाडा की धरती पर एक कनाडाई नागरिक की हत्या में भारत का हाथ होने के आरोप पर बचाव की मुद्रा में नहीं है। सरकार का बचाव की मुद्रा में ना आना राष्ट्रीय स्वाभिमान की भावना को पुष्ट करेगा। मगर इसके साथ ही यह प्रश्न भी है कि क्या साथ-साथ पश्चिम और चीन के गुट के साथ टकराव मोल लेना देश के दूरगामी हित मे है? आशा है, नीति निर्माताओं पर इस पर पर्याप्त विचार किया होगा।