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ठुकराए जाने की खिन्नता

russia ukraine warImage Source: ANI

russia ukraine war : यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की ने ट्रंप से अपनी बातचीत के आधार पर कहा कि अब अमेरिका यूरोप के बचाव में मदद नहीं करेगा। यूरोप एवं अमेरिका की दशकों पुरानी दोस्ती खत्म हो रही है। अब से चीजें अलग दिशा में जाएंगी।

यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोमीर जेलेन्स्की का सुझाव है कि रूस से रक्षा के लिए “यूरोप की सेना” का गठन किया जाए। अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप से हुई अपनी बातचीत के आधार पर उन्होंने कहा कि अब अमेरिका यूरोप के बचाव के लिए मदद नहीं करेगा।

बहुचर्चित म्यूनिख सुरक्षा सम्मेलन में उन्होंने कहा- ‘इसी सम्मेलन में आकर अमेरिकी उप राष्ट्रपति जेडी वान्स ने स्पष्ट कर दिया कि यूरोप एवं अमेरिका के बीच दशकों पुरानी दोस्ती खत्म हो रही है। (russia ukraine war)

अब से चीजें अलग दिशा में जाएंगी। यूरोप को उसके मुताबिक खुद को ढालना होगा।’ सचमुच बीते हफ्ते की घटनाएं जेलेन्स्की की बातों की तस्दीक करती हैं।

ट्रंप ने रूस के राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतिन से फोन वार्ता के बाद साफ कर दिया कि अमेरिका यूक्रेन के लिए अपना सैनिक एवं कूटनीतिक समर्थन खत्म कर रहा है।

उसके बाद अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो और रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव की फोन वार्ता का निष्कर्ष रहा कि अमेरिका रूस के साथ कूटनीतिक एवं व्यापारिक संबंध फिर बनाने के रास्ते बना रहा है।

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यूक्रेन का तो अस्तित्व ही खतरे में (russia ukraine war)

उसने संकेत दिया है कि तीन साल पहले यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद रूस पर लगे व्यापारिक एवं वित्तीय प्रतिबंधों को हटाने के लिए वह तैयार है।

यह सब यूरोपीय देशों को बिना भरोसे में लिए किया गया है, जिन्होंने तत्कालीन जो बाइडेन प्रशासन की प्राथमिकताओं के अनुरूप चलते हुए अपनी समृद्धि और अर्थव्यवस्था को दांव पर लगा दिया। (russia ukraine war)

जाहिर है, अब ये सारे देश ठुकराए जाने की चुभन झेल रहे हैं। उनके बीच जेलेन्स्की अधिक खिन्न हैं, तो यह लाजिमी ही है। यूरोप की सेना बनाने का उनका सुझाव इसी खिन्नता का इजहार है।

लेकिन दूसरे विश्व युद्ध के बाद बनी यूरोपीय व्यवस्था में अमेरिका के बिना यूरोप के लिए अपनी रक्षा करना एक नामुमकिन-सा नुस्खा है। कम-से-कम तुरंत तो ऐसा नहीं हो सकता। (russia ukraine war)

जबकि चुनौती तात्कालिक है। इस लाचारी के मद्देनजर यूरोप फिलहाल सिर्फ ये अफसोस ही कर सकता है कि उसने पहले स्वतंत्र रक्षा एवं विदेश नीति क्यों नहीं अपनाई? नतीजा है कि आज यूरोपीय परियोजना खतरे में है। यूक्रेन का तो अस्तित्व ही खतरे में पड़ गया है।

By NI Editorial

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