सरकारी अधिकारियों के हवाले से छपी यह खबर महत्त्वपूर्ण है कि अनेक पीएलआई प्रोजेक्ट्स संतोषजनक नतीजे देने में नाकाम रहे हैं, इसलिए चुपचाप पूरी योजना को ‘दफनाया’ जा गया है। अब पीएलआई संभवतः सरकार की पसंदीदा योजना नहीं रह गई है।
नरेंद्र मोदी सररकार की अन्य कई योजनाओं की तरह प्रोडक्शन लिंक्ड इन्सेंटिव (पीएलआई) स्कीम की शुरुआत भी खूब शोर-शराबे के साथ हुई। और संभवतः इसका भी हश्र वही हो रहा है, जो ऐसी बाकी योजनाओं का हुआ। सरकारी अधिकारियों के हवाले से एक बिजनेस अखबार में छपी यह खबर महत्त्वपूर्ण है कि अनेक पीएलआई प्रोजेक्ट्स संतोषजनक नतीजे देने में नाकाम रहे हैं, इसलिए अब चुपचाप पूरी योजना को ‘दफनाया’ जा गया है। एक अधिकारी ने अखबार से कहा- ‘अब पीएलआई सरकार की पसंदीदा योजना नहीं रही।’ ये योजना वित्त वर्ष 2021-22 में शुरू की गई, ताकि भारतीय कंपनियां वैश्विक प्रतिस्पर्धा के योग्य बन सकें। तब कहा गया था कि 14 सेक्टर्स में उद्योग लगाने वाली कंपनियों को सरकार 195 लाख करोड़ रुपये की सब्सिडी देगी। ये रकम 2029-30 तक दी जानी थी।
इन सेक्टर्स में ओटोमोबिल, उन्नत रसायनिक सेल बैटरी, विशिष्ट किस्म का स्टील और कपड़ा शामिल थे। मगर इन सब में लक्ष्य से बहुत कम निवेश हुआ है। ताजा उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक योजना के तहत सिर्फ 11,317 करोड़ रुपये- यानी तय लक्ष्य के मात्र छह फीसदी हिस्से की सब्सिडी का अब तक वितरण हुआ है। जाहिर है, जब कंपनियां निवेश नहीं करेंगी, तो सब्सिडी आखिर किसे दी जाएगी? उधर कॉरपोरेट अधिकारियों के मुताबिक योजना के धीमी गति से बढ़ने का कारण जटिल नियम और लालफीताशाही हैं। सार यह कि मेक इन इंडिया योजना के बाद पीएलआई भी भारत को मैनुफैक्चिंग सेंटर बना पाने में विफल होता दिख रहा है। तो सरकार में सोच बन रही है कि अब ये सब्सिडी उन उद्योगों की दी जाए, जो अधिक संख्या में रोजगार पैदा कर सकें।
खिलौना, चमड़ा/जूता-चप्पल, केमिकल्स, साइकिल, जहाजरानी निर्माण आदि क्षेत्रों का इस सिलसिले में जिक्र हुआ है। बहरहाल, ऐसे आम किस्म के सेक्टर्स को सब्सिडी की जरूरत है, यह सोच ही अपने-आप में समस्याग्रस्त है। दिक्कत यह है कि सरकार असल मसले पर ध्यान नहीं दे रही है। मसला है, देश में उद्योग आपूर्ति शृंखला का अभाव और उपभोक्ता बाजार का गतिरुद्ध होना। इन सहारों के बिना कोई योजना भारतीय अर्थव्यवस्था के किसी सेक्टर में गति नहीं ला सकती।