एमएससीआई- ईम में भारत का वजन 200 आधार अंक घटा है। जनवरी में भारतीय कंपनियों के साझा वजन का हिस्सा 18.41 था। इसी तरह एमएससीआई ईम इन्वेस्टेबल मार्केट इंडेक्स में भारत का हिस्सा गिर कर 19.7 पर आ गया है।
भारत के शेयर बाजारों का पूंजी मूल्य लगातार घट रहा है। लाजिमी है, उभरते बाजारों के संकेतक- एमएससीआई ईएम में भारत का प्रभाव भी कमजोर पड़ रहा है। पिछले सितंबर के बाद से भारतीय शेयर बाजारों के मूल्य में एक खरब रुपये से ज्यादा की गिरावट आ चुकी है। नतीजतन एमएससीआई- ईम में भारत का वजन 200 आधार अंक घट गया है। बीते जनवरी में भारतीय कंपनियों के साझा वजन का हिस्सा 18.41 था, जबकि पिछले सितंबर में यह 20.8 था। इसी तरह एमएससीआई ईम इन्वेस्टेबल मार्केट इंडेक्स में भारत का हिस्सा 22.3 से गिर कर 19.7 पर आ गया है। इन सबकी वजह विदेशी वित्तीय संस्थानों का भारतीय बाजारों से बड़ी मात्रा में पैसा निकालना है।
पैसा अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियों के कारण निकाला गया है। डॉनल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद उनकी अमेरिका फर्स्ट नीति के प्रभाव से डॉलर और महंगा हुआ है, तो निवेशक उभरते बाजारो से पैसा निकाल कर अमेरिका ले जा रहे हैं। नतीजा भारतीय बाजारों और यहां के घरेलू छोटे निवेशकों को भी भुगतना पड़ा है। साथ ही भारत जैसे देशों की मुद्राओं की कीमत भी डॉलर की तुलना में गिरी है। बहरहाल, वित्तीय अर्थव्यवस्था का यही स्वभाव है। इसमें धनी उत्पादक निवेश या उपभोक्ता बाजार के विस्तार से पैदा नहीं होता। बल्कि पैसे वालों पैसा अटकलों पर आधारित निवेश से बढ़ता है। इस खेल में महारत हासिल कर चुकी कंपनियों का धन किस कदर बढ़ा है, इसका अंदाजा एक ताजा रिपोर्ट से लगाया जा सकता है।
हुरून इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 500 सबसे धनी प्राइवेट कंपनियों का साझा मूल्य 2023 में 324 खरब रुपये- यानी लगभग 3.8 ट्रिलियन तक पहुंच गया था, जबकि भारत की जीडीपी महज 3.5 ट्रिलियन ही थी। यानी भारत के जीडीपी से ज्यादा मूल्य 500 सबसे बड़ी कंपनियों का बढ़ा। यह धन कहां से आया? उत्पादन संबंधी मुनाफे से आता, तो देश की समृद्धि में वह प्रतिबिंबित होता। मगर कंपनियां देश-विदेश में अटकल आधारित वित्तीय संपत्तियों में निवेश से धनी हुईं। इसे ही कुछ अर्थशास्त्री बबूला अर्थव्यवस्था कहते हैँ। पानी के बबूले आखिरकार फूटते ही हैं। फिलहाल, शायद वही हो रहा है।