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आपको ही बताना है

देश की ताकत बढ़ी है, तो उसका असर सीमाओं पर क्यों नहीं दिखा? उससे वहां शांति कायम करने में मदद क्यों नहीं मिली? कोई सरकार दस साल सत्ता में रहने के बाद किसी भी मसले पर अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकती।

राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवाल के इस बयान से सहज सहमत हुआ जा सकता है कि उत्तर और पश्चिम में “अपरिभाषित सीमाओं” का भारत पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। उन्होंने कहा कि देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए इन सीमाओं के परिणाम महत्त्वपूर्ण हैं। उन सीमाओं से आंतरिक सुरक्षा के लिए आने वाली चुनौतियों में उन्होंने आतंकवाद, उग्रवाद, मादक पदार्थों की तस्करी आदि को शामिल किया। साथ ही एक बेहद अहम टिप्पणी की। कहा कि सीमा पर अशांति का असर देश की आर्थिक प्रगति पर पड़ा है। फिर दावा किया कि वर्तमान सरकार के प्रयासों गुजरे दस साल में देश की शक्ति में महत्त्वपूर्ण बढ़ोतरी हुई है। अब गौर से देखें, तो पहली नजर में ये दोनों बातें अंतर्विरोधी मालूम पड़ती हैं। प्रश्न है कि देश की ताकत में महत्त्वपूर्ण वृद्धि हुई है, तो उसका असर सीमाओं पर क्यों नहीं दिखा है? उससे वहां शांति कायम करने में मदद क्यों नहीं मिली? कोई सरकार दस साल सत्ता में रहने के बाद किसी भी मसले को विरासत में मिली समस्या बताकर अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकती।

नरेंद्र मोदी सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे पर कोई नरमी ना बरतने और “मर्दाना नीति” अपनाने के दावे किए हैं। पहले की सरकारों को कमजोर बताने का कोई मौका वह हाथ से नहीं जाने देती। तो यह जवाब इस सरकार के कर्ता-धर्ताओं को ही देना होगा कि दस साल में इस मोर्चे पर उनकी उपलब्धि क्या है? चीन से लगी सीमा पर हालात चार साल पहले क्यों भड़क उठे? यह आम जानकारी है कि उसके बाद से भारत को वहां व्यापक सुरक्षा तैनाती करनी पड़ी है, जिससे राजकोष पर अतिरिक्त बोझ पड़ा है। अपेक्षित यह है कि सरकार के वरिष्ठ अधिकारी ये बताएं कि इस दुश्चक्र से निकलने की किस योजना या रणनीति पर वे अमल कर रहे हैं? भारत जैसे विकासशील देश की यह प्राथमिक जरूरत है कि अधिक से अधिक संसाधन विकास एवं जन-कल्याण पर खर्च किए जाएं, ताकि अर्थव्यवस्था के लिए दुरुस्त बुनियादी ढांचा और कुशल कर्मी तैयार हो सकें। इसीलिए डोवल ने जो चर्चा छेड़ी है, वो अहम है। इस पर व्यापक बहस होनी चाहिए।

By NI Editorial

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