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दुश्चक्र में फंसा फ्रांस

राजनीति से जब रोजी-रोटी समेत रोजमर्रा की जिंदगी से जुड़े अन्य मुद्दों को गायब किया जाता है, तो उसका क्या नतीजा होता है, फिलहाल फ्रांस उसका एक खास उदाहरण बना हुआ है।

फ्रांस लंबे समय तक अपनी जन-कल्याणकारी व्यवस्था और आधुनिक लिबरल उसूलों के लिए जाना जाता रहा। लेकिन कुछ समय पहले वहां के राजनीतिक विमर्श में सांप्रदायिक और नस्लवादी मुद्दों को महत्त्व देने की जो होड़ लगी, उसने वहां के समाज की हालत तीसरी दुनिया के किसी देश की तरह बना दी है। पेरिस के एक उपनगर में 17 साल के लड़के की पुलिस की गोली से हुई मौत के बाद जैसी हिंसा और अफरातफरी का शिकार फ्रांस हुआ है, उस बारे में कभी सोचना भी मुश्किल था। राजनीति से जब रोजी-रोटी समेत रोजमर्रा की जिंदगी से जुड़े अन्य मुद्दों को गायब किया जाता है, तो उसका क्या नतीजा होता है, फिलहाल फ्रांस उसका एक खास उदाहरण बना हुआ है। यह बात ध्यान में रखनी चाहिए कि पिछले लगभग दो दशक से फ्रांस की राजनीति धुर दक्षिणपंथ बनाम उदारवाद की बहस में सिमटी रही है। पूर्व राष्ट्रपति यॉक शिराक के जमाने से धुर दक्षिणपंथ को रोकने के लिए कंजरवेटिव, उदारवादी और यहां तक कि वामपंथी ताकतें एक मंच पर एकजुट होती रही हैँ।

इस दौरान सारी बहस नस्ल, इस्लामोफोबिया, आव्रजन और एलजीबीटीक्यू अधिकार जैसे मसलों पर सिकुड़ती चली गई है। ऐसे मुद्दों पर बहस भावनात्मक रूप लेती है और फिर ध्रुवीकरण और प्रति-ध्रुवीकरण का ऐसा दौर चलता है, जो समाज को एक दुश्चक्र में फंसा देता है। फ्रांस स्पष्टतः ऐसे दुश्चक्र में फंस गया है। अभी कुछ समय पहले फ्रांस की सड़कों पर पेंशन नियम बदलने के लिए बनाए गए कानून को लेकर अफरातफरी मची थी। उसके पहले ईंधन की कीमत बढ़ने से परेशान लोगों के येलो वेस्ट मूवमेंट का नजारा था। बीच-बीच में आतंकवाद का साया भी देश पर पड़ता रहा। जवाब में पुलिस और सुरक्षा बल अधिक बेरहम होते गए। फिलहाल, एक नौजवान की पुलिसकर्मियों के हाथों हत्या वह तिली बनी, जिसने सुलगते माहौल को लपटों में तब्दील कर दिया। 2017 के एक कानून के तहत फ्रांस में प्रावधान किया गया था कि अगर पुलिस ने किसी गाड़ी को रोकना चाहा, लेकिन ड्राइवर नहीं रुका, तो पुलिस गोली चला सकती है। तो पुलिस ने बेखौफ होकर गोली चलाई, जिससे अब पूरा समाज खौफ में पहुंच गया है।

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By NI Editorial

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