अचानक शनिवार को निर्वाचन आयोग ने पांच चरणों में जिन 428 निर्वाचन क्षेत्रों में मतदान हुआ, वहां मौजूद कुल मतदाताओं और उनमें से जितनों ने वोट डाले, उनकी संख्या प्रकाशित कर दी। तो यह प्रश्न उठा ही है कि आखिर ये हृदय-परिवर्तन क्यों हुआ?
निर्वाचन आयोग ने पहले सभी चुनाव क्षेत्रों के फॉर्म 17-सी को अपनी वेबसाइट पर डालने की मांग का विरोध किया। सुप्रीम कोर्ट में इस संबंध में दी गई याचिका पर अपने जवाब में उसने उन फॉर्मों के शरारतपूर्ण दुरुपयोग की आशंका जताई। कहा कि फॉर्म की तस्वीरों में हेरफेर कर कुछ लोग चुनाव प्रक्रिया में अविश्वास पैदा करने की कोशिश कर सकते हैं। उसने ये दलील भी दी कि ऐसा कोई कानून नहीं है, जिनके तहत इन फॉर्म को सार्वजनिक करने के लिए आयोग बाध्य हो। बल्कि आयोग ने तो सीधे याचिकाकर्ता गैर-सरकारी संगठन एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स की मंशा पर सवाल उठा दिए। आयोग की दलीलें सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार कर लीं। इससे सार्वजनिक जीवन के एक बड़े हिस्से में तीव्र व्यग्रता पैदा हुई। निर्वाचन आयोग ने चुनाव प्रक्रिया को संदिग्ध बनाने की कोशिश की आशंका जताई थी, जबकि इस मामले में उसके रुख, और सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद इस बारे में संदेह और ज्यादा जताए जाने लगे। तब अचानक शनिवार को आयोग ने पांच चरणों में जिन 428 निर्वाचन क्षेत्रों में मतदान हुआ, वहां मौजूद कुल मतदाताओं और उनमें से जितनों ने वोट डाले, उनकी संख्या प्रकाशित कर दी।
तो यह प्रश्न उठा ही है कि आखिर ये हृदय-परिवर्तन क्यों हुआ? अनुमान लगाया जा सकता है कि बने सार्वजनिक दबाव को और अधिक झेलना आयोग को अपने माफिक महसूस नहीं हुआ होगा। बहरहाल, इस ओर तुरंत ध्यान खींचा गया कि अभी जो सूचना आयोग ने दी है, उसमें और फॉर्म 17-सी को प्रकाशित करने में फर्क है। फॉर्म 17-सी में बूथ-वार संख्या होती है। फिलहाल निर्वाचन क्षेत्र-वार सूचना दी गई है। बेहतर होगा कि आखिरकार जब आयोग ने ये जानकारी साझा करने का निर्णय लिया ही लिया है, तो वह पूरी सूचना दे। पहले ही अपने आचरण से ना सिर्फ उसने सार्वजनिक दायरे में बेवजह बदमजगी पैदा की है, बल्कि उसके रुख-परिवर्तन से सर्वोच्च न्यायालय के लिए भी असहज स्थितियां पैदा हुई हैं। ताजा घटनाक्रम के साथ ये पूरा प्रकरण अधिक रहस्यमय मालूम पड़ने लगा है। इस धुंध को छांटने का एक उपाय यही है कि आयोग अब पूरी पारदर्शिता बरते।