आम चुनाव के दौर में अपेक्षा रहती है कि देश की वास्तविक समस्याओं के समाधान के लिए विभिन्न राजनीतिक दल अपना कार्यक्रम सामने रखेंगे। यह तो निर्विवाद है कि इस समय बेरोजगारी सबसे बड़ी समस्या है। लेकिन इसके समाधान पर सियासी दायरे में पूरी चुप्पी है।
अब विश्व बैंक ने भारत को आगाह किया है। विषय वही है यानी रोजगार के अवसरों का अभाव- एक ऐसी सूरत जिसमें तेज आर्थिक वृद्धि दर के साथ-साथ उतनी ही तेजी से बेरोजगारी भी बढ़ती जा रही है। विश्व बैंक ने दक्षिण एशिया के बारे में जारी अपने आकलन में भारत को चेतावनी दी है कि उसे बड़ी जनसंख्या से मिल सकने वाले लाभ को वह वहां गंवा देने की स्थिति में पहुंच गया है। बैंक ने बेलाग कहा है कि भारत और उसके पड़ोसी देश अपनी युवा आबादी के अनुरूप पर्याप्त रोजगार पैदा नहीं कर पा रहे हैं। इन देशों में रोजगार अनुपात गिर रहा है। इस कारण ये देश अपनी अर्थव्यवस्था में अपनी बड़ी युवा आबादी की भूमिका निर्मित नहीं कर पा रहे हैं। दक्षिण एशिया क्षेत्र के लिए विश्व बैंक के प्रमुख अर्थशास्त्री फ्रेंजिस्का ऑहन्सोर्ज ने इस स्थिति को “अवसर गंवाने” की कथा बताया और कहा- “बड़ी आबादी के लाभ (डेमोग्रैफिक डिविडेंड) को ये देश लुटा रहे हैं।”
इस संदर्भ में सेंटर फॉर मोनिटरिंग ऑफ इंडियन इकॉनमी के आंकड़ों का उल्लेख करते हुए इस तरफ ध्यान दिलाया गया है कि खासकर भारत में बेरोजगारी भयावह रूप लेती जा रही है। 2023 में युवा बेरोजगारी की दर 45.4 प्रतिशत तक पहुंच गई। अभी कुछ ही रोज पहले अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) ने भारत में रोजगार की विकट होती जा रही स्थिति पर अपनी विस्तृत रिपोर्ट जारी की थी। उसमें बताया गया था कि कैसे भारत जॉबलेस ग्रोथ (रोजगार-विहीन आर्थिक विकास) की अवस्था में फंस गया है। आईएलओ ने भारत में बेरोजगारी की स्थिति को भीषण बताया था। इस समय भारत आम चुनाव के दौर में है। ऐसे दौर में, जब अपेक्षा रहती है कि देश की वास्तविक समस्याओं पर व्यापक चर्चा होगी और उनके समाधान के लिए विभिन्न राजनीतिक दल अपना कार्यक्रम लोगों के सामने रखेंगे। यह तो निर्विवाद है कि भारत के सामने इस समय बेरोजगारी से बड़ी कोई और समस्या नहीं है। परंतु अगर सियासी वाद-विवाद और मेनस्ट्रीम मीडिया की चर्चाओं पर गौर करें, तो ऐसा अहसास होगा जैसे ये कोई समस्या ही नहीं है। यह दुखद स्थिति है।