आरएसफ ने कहा है- पत्रकारों के खिलाफ हिंसा, मीडिया स्वामित्व का केंद्रीकरण और (मीडिया के) राजनीतिक जुड़ाव के कारण भारत में प्रेस की आजादी खतरे में है। मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से देश में प्रेस स्वतंत्रता में गिरावट आती चली गई है।’
फ्रांस स्थित संस्था रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर (आरएसएफ) की नई रैंकिंग में पहली नजर में भारत की स्थिति सुधरी नज़र आती है। 2022 की रैंकिंग में भारत 161वें नंबर पर था, जबकि 2023 में वह 159वें स्थान पर आया है। इसी आधार पर ऐसी सुर्खी बनी कि भारत में प्रेस स्वतंत्रता की स्थिति में सुधार। जबकि आरएसएफ ने खुद कहा है कि भारत का दो पायदान चढ़ना गुमराह करने वाली तस्वीर पेश करता है। ऐसा इसलिए हुआ, क्योंकि कुछ देशों में- जो पिछली रिपोर्ट में भारत के ऊपर थे- हालात इतने बिगड़े कि इस बार उन्हें भारत के नीचे रखा गया है। गौर करने का असल आंकड़ा अंक हैं। 2022 में भारत को 36.62 अंक मिले थे। 2023 में उसे 31.28 अंक ही मिल सके। यानी पांच अंकों की गिरावट आई। आरएसएफ ने कहा है कि भारत की उभरी सूरत लोकतांत्रिक देश के उपयुक्त नहीं है। उसने कहा है- ‘पत्रकारों के खिलाफ हिंसा, मीडिया स्वामित्व का उच्च केंद्रीकरण और (मीडिया के) राजनीतिक जुड़ाव के कारण दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में प्रेस की आजादी खतरे में है।’
रिपोर्ट में कहा गया है कि 2014 में नरेंद्र मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से देश में प्रेस स्वतंत्रता में गिरावट आती चली गई है। अनुमान है कि मोदी सरकार हर साल की तरह इस बार भी इस रिपोर्ट को पूर्वाग्रह-ग्रस्त बताकर इसे ठुकरा देगी। यह भी मुमकिन है कि वह भारत स्थित किसी संस्था को वैश्विक प्रेस फ्रीडम इंडेक्स बनाने का काम सौंप दे, जैसाकि उसने डेमोक्रेसी इंडेक्स के बारे में किया है। परंतु सरकार के कर्ता-धर्ता गौर करें, तो उन्हें अहसास होगा कि इस तरह हेडलाइन प्रबंधन करने का उनका तरीका अब बेअसर हो रहा है। इस तरीके से सरकार के कट्टर समर्थक वर्ग के अलावा अब कोई प्रभावित नहीं होता। बहरहाल, ताजा रिपोर्ट में खास बात मीडिया स्वामित्व के संकेद्रण की विशेष चर्चा है। इस पर ध्यान दिया जाए, तो यही निष्कर्ष निकलता है कि जब अर्थव्यवस्था में मोनोपॉली बन जाती है, तो उसका गहरा असर मीडिया और राजनीति पर भी पड़ता है। भारत में ऐसा ही हो रहा है।