यह अवश्य कहा जाएगा कि डायबिटीज जिस तेजी से फैली है, उसके अनुरूप चिकित्सा सुविधाएं फैलाने के तकाजे को नजरअंदाज किया गया है। इसीलिए वास्तविक संख्या के लिहाज से आज कहीं ज्यादा लोग बिना उचित इलाज के यह रोग झेल रहे हैं।
दुनिया में तकरीबन 82 करोड़ 80 लाख लोग इस समय डायबिटीज के मरीज हैं। उनमें से लगभग एक चौथाई- यानी 21 करोड़ 20 लाख भारत में हैं। विश्व में 30 वर्ष से अधिक उम्र वाले लगभग साढ़े 44 करोड़ डायबिटीज मरीजों को उचित इलाज की सुविधा हासिल नहीं है। भारत में ऐसे लोगों की संख्या 13 करोड़ 30 लाख है। 1990 के बाद डायबिटीज मरीजों की संख्या चार गुना बढ़ी है। ऐसे मरीजों की संख्या साढ़े तीन गुना बढ़ी, जिन्हें उचित चिकित्सा उपलब्ध नहीं है। ये तथ्य ब्रिटिश स्वास्थ्य जर्नल द लासेंट के ताजा शोध पत्र से सामने आए हैं। इनके मद्देनजर यह अवश्य कहा जाएगा कि ये बीमारी जिस तेजी से फैली है, उसके अनुरूप चिकित्सा सुविधाएं फैलाने के तकाजे को नीति-निर्माताओं ने नजरअंदाज किया है।
इसलिए वास्तविक संख्या के लिहाज से आज कहीं ज्यादा लोग बिना उचित इलाज के इस रोग को भुगत रहे हैं। दक्षिण एशिया में डायबिटीज सबसे तेजी से फैली है, यह जाना-पहचाना तथ्य है। यह ऐसी बीमारी है, जो कई बीमारियों की जड़ बनती है। उचित इलाज और मेडिकल सलाह ना मिले, तो धीरे-धीरे व्यक्ति की क्षमता को यह क्षीण करती जाती है। चेन्नई की स्मार्ट इंडिया नाम संस्था के 10 राज्यों में किए अध्ययन से सामने आया था कि बड़ी संख्या में डायबीटिज मरीज नज़र कमजोर होने की समस्या से पीड़ित होते हैं। हाई ब्लडप्रेशर और उसके परिणामस्वरूप पक्षाघात होने जैसी समस्याओं की आशंका डायबिटीज मरीजों में काफी बढ़ जाती है।
अच्छी बात है कि आज डायबिटीज की कारगर दवाएं उपलब्ध हैं। इनके अलावा स्वस्थकर भोजन एवं उचित व्यायाम से इसे नियंत्रित रखना संभव है। मगर समस्या नियमित मेडिकल जांच, दवाओं और उचित सलाह की उपलब्धता की है। चिकित्सा व्यवस्था के निजीकरण के साथ ये सुविधाएं इतनी महंगी हो गई हैं कि आम शख्स के लिए इन्हें हासिल करना कठिन हो गया है। उधर समृद्ध तबकों में उच्च उपभोग की जीवन शैली ने ऐसी बीमारियों की आशंका बढ़ाई है। द लासेंट जैसी पत्रिकाओं की तारीफ करनी होगी कि वे समय-समय पर ऐसी समस्याओं के प्रति हमें आगाह करती हैं। इस पर ध्यान ना देना अपने लिए जोखिम बढ़ाना होगा।