मुद्दा यह है कि दूरगामी महत्त्व के बेहद महत्त्वपूर्ण विधेयकों को बिना पूरी संसदीय निगरानी एवं पड़ताल के पास कर दिया गया और उसी समय देश को मिमिक्री के बहस में उलझाए रखा गया। क्या देश का इससे बड़ा कोई और मखौल उड़ाया जा सकता है?
थोक भाव से विपक्षी सांसदों को दोनों सदनों निकाले जाने के बाद संसद परिसर में तृणमूल कांग्रेस के कल्याण बनर्जी ने राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ की मिमिक्री की। कांग्रेस नेता राहुल गांधी उसका वीडियो बनाते देखे गए। और इसके साथ ही सत्ता पक्ष को तमाम दूसरे मुद्दों से ध्यान भटकाने का बहाना मिल गया। तो उप-राष्ट्रपति के संवैधानिक पद, जाट और किसान सबके कथित अपमान के मुद्दे उछाल दिए गए। यहां तक कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने धनखड़ के समर्थन में बयान जारी किया और राज्यसभा में उसकी निंदा के लिए प्रस्ताव भी लाया गया। जवाब में विपक्ष ने प्रधानमंत्री की कुछ पुरानी भाव-भंगिमाओं और बयानों को सोशल मीडिया पर शेयर उन्हें मिमिक्री का उस्ताद बताने की मुहिम छेड़ दी। उधर मेनस्ट्रीम मीडिया ने अपने श्रोता वर्ग को इस बहस में उलझ दिया कि कौन ज्यादा बड़ा मिमिक्रीबाज है।
इस बीच संसद ने विपक्ष की गैर-हाजिरी में भारतीय दंड संहिता और साक्ष्य संहिताओं के नए तीन विधेयक पारित कर दिए। साथ ही लोकसभा ने टेलीकॉम बिल को मंजूरी दे दी। जाहिर है, इन सभी विधेयकों को बिना पर्याप्त संसदीय जांच-परख के पास कर दिया गया है, जबकि इनका प्रभाव देश के हर नागरिक पर पड़ेगा। मानव अधिकार संगठन एमनेस्टी इंटरनेशनल ने पारित भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य संहिता के बारे में कहा है कि इनसे भारत में अभिव्यक्ति की आजादी के खिलाफ कार्रवाइयों में और बढ़ोतरी ही होगी। थिंक टैंक इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन (आईएफएफ) ने कहा है कि नए कानूनों से कोई सुधार होना तो दूर, उनसे सरकार का नियंत्रण और सख्त होगा। आईएफएफ ने दूरसंचार विधेयक के बारे में कहा है कि इसके जरिए नई पैकेजिंग में औपनिवेशिक अतीत को प्रस्तुत किया गया है। इस बिल में निगरानी और इंटरनेट को सस्पेंड करने जैसे सरकार के सारे अधिकार बरकरार रखे गए हैँ। तो मुद्दा यह है कि दूरगामी महत्त्व के इतने महत्त्वपूर्ण विधेयकों को बिना पूरी संसदीय निगरानी एवं पड़ताल के पास कर दिया गया और उसी समय देश को मिमिक्री के बहस में उलझाए रखा गया। क्या देश का इससे बड़ा कोई और मखौल उड़ाया जा सकता है?