ममता सरकार के सूत्रों का दावा है कि केंद्र ने राज्य सरकार से फरक्का जल बंटवारे के मामले में कोई बातचीत नहीं की। खबरों के मुताबिक ममता बनर्जी ने इस विषय पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चिट्ठी लिखकर विरोध जताया है।
भारत की प्रतिस्पर्धात्मक राजनीति में ऐसे फैसले हमेशा समस्या खड़ी करते हैं, जिन्हें घोषित करने से पहले सभी संबंधित पक्षों के बीच संवाद और सहमति बनाने की कोशिश ना की गई हो। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कार्यशैली में ये दो बातें सिरे से गायब हैं। नतीजा देश में बढ़े राजनीतिक टकराव के रूप में सामने आता है। ताजा मामला यह है कि भारत और बांग्लादेश के बीच नदी जल के इस्तेमाल को लेकर फिर विवाद खड़ा हो गया है। अगर मोदी सरकार ने 2013 में तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार के रहे तजुर्बे से सबक लिया होता, तो अंतरराष्ट्रीय संबंध के एक महत्त्वपूर्ण मामले में इस विवाद से बचा जा सकता था। तब डॉ. सिंह की सरकार ने बांग्लादेश के साथ इलाकों की अदला-बदली का करार किया, लेकिन पश्चिम बंगाल सरकार के विरोध के कारण वह उस पर अमल नहीं कर पाई। इस बार समस्या फरक्का समझौते को लेकर है, जिसे 2026 में आगे बढ़ाने पर फैसला लिया जाना है। बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना दो दिन की आधिकारिक यात्रा पर भारत आईं। प्रधानमंत्री मोदी से उनकी मुलाकात के बाद जो बयान जारी हुआ, उसमें फरक्का समझौते को आगे बढ़ाने का भी जिक्र है।
ये खबर आने के बाद पश्चिम बंगाल सरकार के सूत्रों ने दावा किया कि केंद्र ने राज्य सरकार से इस बारे में कोई बातचीत नहीं की। उन्होंने मीडिया को बताया है कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस विषय पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चिट्ठी लिखकर विरोध जताया है। बनर्जी ने लिखा है कि फरक्का संधि और तीस्ता नदी के पानी के प्रस्तावित बंटवारे को लेकर पश्चिम बंगाल सरकार को शामिल किए बिना बांग्लादेश से आगे कोई बातचीत नहीं होनी चाहिए। उधर केंद्र के सूत्रों का दावा है कि शेख हसीना से ताजा बातचीत के पहले पश्चिम बंगाल सरकार को भरोसे में लिया गया था। यह बात ध्यान देने की है कि ऐसे विवादों से अंतरराष्ट्रीय मामलों में भारत के रुख को लेकर अनिश्चय पैदा होता है। इसलिए किसी भी वार्ता से पहले देश के अंदर सहमति बना ली जाए, तो ऐसी अप्रिय स्थितियों से बचा जा सकता है।