नतीजा वही उभरा, जिसका अनुमान पहले से था। अब डॉनल्ड ट्रंप ह्वाइट हाउस में लौटने जा रहे हैं और उसके साथ ही उनसे जड़ी रहीं तमाम अनिश्चतताओं और आशंकाओं की भी वापसी हो गई हैँ।
जो बाइडेन व कमला हैरिस प्रशासन ने अपने ही कई फैसलों और नीतियों से खुद अपने समर्थन आधार की जड़ें कमजोर की थी। दूसरी तरफ डॉनल्ड ट्रंप ने गुजरे चार साल में “ट्रंपिज्म” को ना सिर्फ जिंदा रखा, बल्कि बाइडेन प्रशासन से बढ़े असंतोष को अपने पक्ष में संगठित करने में लगातार जुटे रहे। बाइडेन- हैरिस ने ट्रंप के खिलाफ आधे-अधूरे मन से कानूनी कार्रवाइयां कीं, जिनसे पूर्व राष्ट्रपति के समर्थकों में प्रतिशोध की भावना बढ़ाई। चुनाव अभियान के दौरान दो बार हुए जानलेवा हमलों ने ट्रंप के लिए सहानुभूति और बढ़ा दी। नतीजा चुनाव में लैंडस्लाइड जैसे जनादेश के रूप में सामने आया है।
इस लहर पर सवार होकर ट्रंप की रिपब्लिकन पार्टी ने कांग्रेस (संसद) में भी निर्णायक जीत हासिल कर ली है। राज्यों के गवर्नरों के चुनाव में भी रिपब्लिकन पार्टी का पलड़ा भारी रहा। डेमोक्रेटिक पार्टी के प्रबंधक चुनाव नतीजों की ईमानदारी से समीक्षा करें, तो उन्हें अपनी उन बड़ी गलतियों का अहसास होगा, जिनके कारण उन्हें इतना बड़ा झटका लगा है। ऊंची उम्मीदें जगाकर सत्ता में आने के बाद वादों से मुकरना, विदेश नीति में युद्ध को प्राथमिकता बनाना, और इस भरोसे बैठे रहना कि ट्रंप के भय से लोग डेमोक्रेटिक पार्टी को वोट डालने के लिए विवश बने रहेंगे, पार्टी को भारी पड़ा है। हकीकत यह है कि “ट्रंपिज्म” का समर्थन आधार लगातार मजबूत बना हुआ है, जो अब रिपब्लिकन पार्टी की आधिकारिक विचारधारा बन चुका है।
इसका मुकाबला पुरानी मध्यमार्गी नीतियों से करने की रणनीति के सफल होने की संभावना आरंभ से ही कमजोर थी। ऊपर से बाइडेन की लगातार कमजोर होती गई मानसिक क्षमता डेमोक्रेट्स की बड़ी समस्या बन गई। इसके बीच अचानक कमला हैरिस को उम्मीदवार बनाने का दांव पार्टी ने चला, मगर यह साफ होता गया कि नई उम्मीदें जगाने का हैरिस के पास कोई एजेंडा नहीं है, जबकि बाइडेन की विरासत से रहा उनका जुड़ाव उन्हें महंगी पड़ेगा- यह शुरुआत से स्पष्ट था। आखिरकार नतीजा वही उभरा, जिसका अनुमान पहले से था। अब डॉनल्ड ट्रंप ह्वाइट हाउस में लौटने जा रहे हैं और उसके साथ ही उनसे जड़ी रहीं तमाम अनिश्चतताओं और आशंकाओं की भी वापसी हो गई हैँ।