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मीडिया का नया वातावरण

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एक अध्ययन रिपोर्ट से संकेत मिला है कि समाज में अपने-अपने “सच” को लेकर लोग किस हद तक दुराग्रहशील होते जा रहे हैं। नतीजा तथ्यहीन सूचनाओं के प्रसार और उस आधार पर राय बनाने के रूप में सामने आ रहा है।

मीडिया में बने नए वातावरण से राजनीति कैसे प्रभावित हो रही है, इसका एक महत्त्वपूर्ण संकेत मिला है। अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव को मीडिया के नए वातावरण ने कैसे प्रभावित किया है, इस बारे में एक अध्ययन सामने आया है। इसमें जो अमेरिका के बारे में कहा गया है, कमोबेश वो बात हर जगह लागू होती है। मुमकिन है कि भारत जैसे देश में, जहां विकास का स्तर असमान है, वहां अभी भी सूचना या समझ पाने के लिए नए माध्यमों पर कम लोग यकीन करते हों। लेकिन उत्तरोत्तर यहां भी मीडिया का माहौल बदल रहा है, यह निर्विवाद है। इसीलिए अमेरिका में जो सामने आया है, उस पर गौर करने की जरूरत है। अध्ययनकर्ताओं ने कहा है कि नया ट्रेंड ना सिर्फ चुनावों के लिहाज से अहम है, बल्कि इससे यह संकेत भी मिलता है कि भविष्य में अमेरिका में बिजनेस, टेक्नोलॉजी, संस्कृति एवं आम जीवन की अन्य घटनाओं का कैसा रुझान होगा।

इससे संकेत मिला है कि समाज में अपने-अपने “सच” को लेकर लोग कितना अधिक दुराग्रहशील होते जा रहे हैं। नतीजा तथ्यहीन सूचनाओं के प्रसार और उस आधार पर राय बनाने के रूप में सामने आ रहा है। चूंकि 35 वर्ष से ऊपर और इससे कम उम्र के लोगों के सूचना माध्यम बंट गए हैं, इसलिए उनकी समझ और राय में खाई अभूतपूर्व रूप से बढ़ गई है। 35 वर्ष से अधिक उम्र के ज्यादातर लोग अभी भी अखबार, टीवी आदि जैसे मेनस्ट्रीम मीडिया पर भरोसा करते हैं, जबकि इससे कम उग्र के लोगों के लिए सूचना के प्रमुख स्रोत इंस्टाग्राम, टिकटॉक और स्ट्रीमिंग ऑडियो बन गए हैँ।

नतीजतन पॉडकास्टर या नए सोशल मीडिया माध्यमों का कुशल इस्तेमाल करने वाले लोग आज नौजवानों के बीच अपनी बात बेहतर ढंग से पहुंचा पा रहे हैं। इस बिंदु पर डेमोक्रेट उम्मीदवार कमला हैरिस पिछड़ती नजर आई हैं। उनके प्रतिद्वंद्वी रिपब्लिकन उम्मीदवार डॉनल्ड ट्रंप ने पॉडकास्टर्स को लंबे-लंबे इंटरव्यू दिए हैं, जबकि हैरिस कैंपेन ने टीवी चैनलों पर ज्यादा भरोसा किया है। इससे ये दोनों उम्मीदवार अलग-अलग मतदाता वर्गों में ज्यादा अपनी बातें पहुंचा पाए हैँ। नतीजा क्या हुआ है, यह अगले हफ्ते जाहिर होगा।

By NI Editorial

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