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बजट की कुल कहानी

Budget 2025Image Source: ANI

Budget 2025: सोच है कि शहरी मध्य वर्ग के हाथ में अधिक पैसा बचेगा, तो उसे वे उपभोग पर खर्च करेंगे। इससे मांग बढ़ेगी, तो कंपनियां नए निवेश करेंगी। उससे नए लोगों रोजगार को मिलेगा, तो वे भी उपभोग करेंगे। इस तरह अर्थव्यवस्था का चक्र चल पड़ेगा।

आम बजट (2025-26) की बड़ी हेडलाइन है कि सरकार ने शहरी उपभोग को संभालने के लिए मध्य वर्ग को बड़ी कर रियायत दी है।

और असल में पूरी कहानी भी यही है। वित्त मंत्री ने एलान किया कि अब 12 लाख रुपये तक की आमदनी आय कर मुक्त होगी।

75 रुपये के स्टैंडर्ड डिडक्शन को शामिल कर नौकरीपेशा लोगों की 12.75 लाख रुपये तक की आय टैक्स फ्री हो जाएगी।(Budget 2025)

सोच यह है कि इससे शहरी मध्य वर्ग के हाथ में अधिक पैसा बचेगा, जिसे वे उपभोग पर खर्च करेंगे। इससे मांग बढ़ेगी, तो कंपनियां नए निवेश करेंगी। इससे रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे।

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नए लोगों को रोजगार मिलेगा, तो वे भी उपभोग करेंगे। इस तरह अर्थव्यवस्था का चक्र चल पड़ेगा।

मगर हकीकत पर ध्यान दें कि 2023-24 में आय कर रिटर्न फाइल करने वाले लोगों की कुल संख्या 8.09 करोड़ थी।

उनमें से 4.90 करोड़ शून्य रिटर्न थे। तो वास्तव में कुल आय कर दाता लगभग सवा तीन करोड़ लोग रहे। ताजा रियायत से उनको ही लाभ होगा।(Budget 2025)

सरकार के नजरिए से देखें, तो वह प्रत्यक्ष करों में कुल एक लाख करोड़ रुपये की छूट देने जा रही है।

इस पहल के कामयाब होने का सरकार को इतना भरोसा है कि इसके संभावित परिणाम के आधार पर वित्त मंत्री ने 2025-26 में राजकोषीय आय के महत्त्वाकांक्षी आंकड़े बता दिए हैं।

इसके मुताबिक अगले वित्त वर्ष में सरकार को मौजूदा वित्त वर्ष से 11 फीसदी ज्यादा आय होगी।

यह एक और दुश्चक्र(Budget 2025)

ऐसा इसलिए होगा, क्योंकि अर्थव्यवस्था में गति आने के कारण अधिक कर वसूली हो पाएगी। सवाल है कि ऐसा नहीं हुआ, तो क्या राजकोषीय घाटे को 4.4 प्रतिशत तक लाने का लक्ष्य पूरा हो पाएगा?

या सरकार और अधिक ऋण लेगी? अगले वर्ष सरकार की आय का 20 फीसदी हिस्सा ब्याज चुकाने पर खर्च होने जा रहा है।

कर्ज देनदारी सरकार के हाथ को लगातार अधिक बांधती जा रही है।(Budget 2025)

ऐसे में सरकार के लिए अर्थव्यवस्था में सार्थक राजकोषीय हस्तेक्ष करना पहले ही काफी कठिन हो चुका है। यह एक और दुश्चक्र है, जिसका कोई समाधान निर्मला सीतारमन ने नहीं सुझाया है।

By NI Editorial

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