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ग्रोथ पर यकीन नहीं?

चिदंबरम की बातों का मतलब है कि भारत की वृद्धि दर पर सवाल अब संसद तक पहुंच गया है। कई अर्थशास्त्री इस पर पहले से प्रश्न उठाते रहे हैं कि भारत का ग्रोथ रेट सचमुच उतना ऊंचा है, जितना सरकारी आंकड़ों में बताया जाता है।

केंद्रीय बजट पर राज्यसभा में पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने गुजरे वित्त वर्ष में रही भारत की आर्थिक वृद्धि दर के आंकड़े पर कुछ महत्त्वपूर्ण सवाल उठाए। चिंदबरम की बातें दो लिहाज से अहम हैं। एक तो वे आर्थिक मामलों में मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के आधिकारिक प्रवक्ता हैं और दूसरे इसलिए कि उन्होंने लंबे समय तक भारत के वित्त मंत्री की जिम्मेदारी संभाली है। इसलिए उनकी बातों का मतलब है कि भारत की वृद्धि दर पर संदेह मुख्यधारा राजनीति और उसके माध्यम से अब संसद के अंदर तक पहुंच गया है। गौरतलब है कि अनेक अर्थशास्त्री इस दावे पर पहले से प्रश्न उठाते रहे हैं कि भारत का ग्रोथ रेट सचमुच उतना ऊंचा है, जितना सरकारी आंकड़ों में बताया जाता है। यहां तक कि नरेंद्र मोदी सरकार के पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रह्मण्यम और इसी सरकार की आर्थिक सलाहकार परिषद के सदस्य रह चुके रतिन रॉय भी दबी-छिपी जुबान में ऐसे सवाल उठा चुके हैं। अब अर्थशास्त्रियों की तरह चिदंबरम ने भी डिफ्लेटर का मुद्दा उठाया है।

किसी देश की आर्थिक वृद्धि दर के दो आंकड़े होते हैः एक सकल (नोमिनल) वृद्धि दर और एक वास्तविक वृद्धि दर। नोमिनल वृद्धि दर की गणना मुद्रास्फीति दर के साथ की गई होती है। जबकि मुद्रास्फीति दर को नोमिलन वृद्धि दर से घटा कर वास्तविक वृद्धि दर निकाली जाती है। 2023-24 में भारत की नोमिनल वृद्धि दर 10.5 प्रतिशत रही। इस अवधि में थोक भाव सूचकांक मुद्रास्फीति दर तकरीबन 3 प्रतिशत रही। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति दर 5.1 फीसदी रही। जबकि ग्रोथ रेट 8.2 प्रतिशत बताया गया है। यह आंकड़ा कहां से आया? संभवतः सरकार ने डिफ्लेटर के तौर पर कोर सेक्टर की मुद्रास्फीति दर का इस्तेमाल किया, जो 1.7 प्रतिशत थी। मगर यह जीडीपी आंकने का विवादास्पद तरीका है। सबसे मान्य तरीका उपभोक्ता मूल्य सूचकांक है और उस आधार पर भारत की वृद्धि दर 5.4 प्रतिशत ठहरेगी। चूंकि यह चर्चा अब संसद तक पहुंच गई है, तो सरकार को यह अवश्य समझना चाहिए कि सुविधाजनक आंकड़ों का इस्तेमाल करने के उसके रुख के कारण आर्थिक सूरत पर अविश्वास लगातार गहराता जा रहा है।

By NI Editorial

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