वर्तमान सरकार के कुछ कदम बेरोजगारी को बढ़ाने वाले रहे हैं, लेकिन कुल मिलाकर यह समस्या व्यवस्थागत है। जब तक उस पर ध्यान नहीं दिया जाता, इसका कोई समाधान नहीं निकल सकता।
भारत में बेरोजगारी की समस्या गंभीर रूप लेती जा रही है। दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि इसके बावजूद यह मुख्य राजनीतिक विमर्श का हिस्सा नहीं है। विपक्षी नेता जब-तक इस समस्या का जिक्र जरूर करते हैं, लेकिन समस्या क्यों है और उसका समाधान क्या है, इन सवालों पर उनके पास कहने के लिए कुछ नहीं होता। उनका सिर्फ यह कहना होता है कि नरेंद्र मोदी सरकार ने बेरोजगारी बढ़ा दी है। बेशक, वर्तमान सरकार के कुछ कदम बेरोजगारी को बढ़ाने वाले रहे हैं, लेकिन कुल मिलाकर यह समस्या व्यवस्थागत है। जब तक उस पर ध्यान नहीं दिया जाता, इसका कोई समाधान नहीं निकल सकता। फिलहाल, अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय की ताजा रिपोर्ट चर्चा में है, जिसमें बताया गया है कि भारत में 15 प्रतिशत से ज्यादा ग्रैजुएट बेरोजगार हैं। 25 साल से कम उम्र के ग्रैजुएट्स के बीच तो बेरोजगारी दर 42 प्रतिशत तक है। ‘स्टेट ऑफ वर्किंग इंडिया-2023’ रिपोर्ट में भारत में रोजगार की चिंताजनक तस्वीर पेश की है।
बताया गया है कि 2019 के बाद से भारत में नियमित वेतन की नौकरियों के सृजन की रफ्तार कम हुई है। इसका एक बड़ा कारण कोविड-19 महामारी रही। महामारी के बाद रोजगार की स्थिति में सुधार हुआ। ग्रैजुएट लोगों को नौकरियां मिलने लगीं। लेकिन सवाल बना हुआ है कि उन्हें किस तरह की नौकरियां मिल रही हैं और क्या ये उनके कौशल और आकांक्षाओं से मेल खाती हैं? जाहिर है, ऐसी स्थिति नहीं है। हाल ही कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने दिल्ली के आनंद विहार स्टेशन पर कुली कर्मियों से संवाद किया। उस दौरान सामने आया कि कुछ ग्रैजुएट कुली का काम कर रहे हैं। महिलाओं में तो रोजगार की दर 2004 के बाद से या तो रुकी हुई रही या गिरी है। 2019 के बाद से महिलाओं के बीच घरेलू आर्थिक दबाव के कारण स्वरोजगार का ट्रेंड जरूर बढ़ा है। लेकिन अपने देश की यह हकीकत कायम है कि स्वरोजगार अक्सर मजबूरी में किया जाता है और ज्यादातर मामलों में इसका अर्थ अर्ध-रोजगार होता है। खुद रिपोर्ट में बताया गया है कि नियमित वेतन वाली नौकरी की जगह महिलाओं के बीच स्वरोजगार बढ़ा और इस वजह से उनकी आमदनी घट गई।