जब बेरोजगारी की समस्या गंभीर हो रही हो, तो घोटालेबाजों के लिए अनुकूल स्थितियां सहज ही बन जाती हैं। वे विदेशों में आकर्षक करियर का वादा कर नौजवानों को फंसाते हैं। कंबोडिया गए नौजवानों के साथ भी यही हुआ।
बीते सप्ताहांत भारत सरकार के विदेश मंत्रालय ने कंबोडिया और दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों में नौकरी की तलाश में जा रहे भारतवासियों के लिए एडवाइजरी जारी की। इसके पहले खबर आई थी कि कंबोडिया से उन 250 भारतीयों को वापस लाया गया है, जो नौकरी के लालच में वहां जाकर घोर दुर्दशा में फंस गए थे। इसके साथ ही रोजगार के लिए विदेश जाने के लिए बेसब्र भारतीयों की मुश्किलों पर फिर ध्यान गया है। श्रम और साइबर सेफ्टी विशेषज्ञों का कहना है कि नौकरी के लिए परेशान लोगों को निशाना बनाने के लिए देश में ऑनलाइन जॉब स्कैम में हाल में तेजी से बढ़ोतरी हुई है। कंबोडिया में जो हुआ, या उसके पहले अमेरिका में अवैध घुसपैठ के लिए जाने वाले भारतीयों को जिन हालात से गुजरना पड़ा, अथवा युद्धग्रस्त इजराइल जाने के लिए भारतीय श्रमिकों की जैसी कतार लगी, वह अपने-आप में बेहद दुखद है। लेकिन मुद्दा यह है कि आखिर ये हालत क्यों गंभीर होती जा रही है? जाहिर है, असल कारण देश में रोजगार के घटते अवसर हैं।
देश में बेरोजगारी और कुशल स्थायी नौकरियों की कमी अपने चरम पर है। खासकर ग्रामीण इलाकों में संकट बेहद गहरा गया है। यह अकारण नहीं है कि मौजूदा लोकसभा चुनाव को भावनात्मक मुद्दों पर केंद्रित रखने की सत्ताधारी भाजपा की तमाम कोशिशों के बावजूद बेरोजगारी एक बड़ा मुद्दा बन गया है। जब ऐसे हालात हों, तो घोटालेबाजों के लिए अनुकूल स्थितियां सहज ही बन जाती हैं। वे विदेशों में आकर्षक करियर का वादा कर नौजवानों को फंसाते हैं। कंबोडिया गए नौजवानों के साथ भी यही हुआ। उन्हें सोशल मीडिया के जरिए फंसाया गया। सामने आई जानकारी के मुताबिक हजारों लोग कंबोडिया, लाओस और म्यांमार में जा फंसे हैं। इन लोगों को पहले एक ह्वाट्सऐप ग्रुप में जोड़ा गया, जिसमें एजेंटों ने उन्हें दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों में मौजूद कथित वैकेंसी की जानकारी दी। वहां जाने के बाद नौजवानों को अहसास हुआ कि उनके साथ धोखा हुआ है। बेशक घोटालेबाजों पर तुरंत कार्रवाई होनी चाहिए। लेकिन अगर समस्या की जड़- यानी बेरोजगारी पर लगाम नहीं लगी, तो ऐसी घटनाओं को रोकना मुश्किल बना रहेगा।