बेरोजगारी के मुद्दे को चुनाव में नजरअंदाज करना बहुत बड़ा जोखिम उठाना है। यह बात अवश्य ध्यान में रखनी चाहिए कि देश चाहे जितनी बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाए, लेकिन अगर करोड़ों युवा बेरोजगार बने रहते हैं, तो उससे भारत का कोई भला नहीं होगा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक समाचार एजेंसी को एक घंटा 17 मिनट का लंबा वीडियो इंटरव्यू दिया। इसमें उन्होंने विभिन्न विषयों की चर्चा की। अपनी सरकार की उपलब्धियां गिनाईं और अगले एजेंडे पर चर्चा की। फिर भी इस इंटरव्यू में कई जरूरी मसले नहीं आए। बेरोजगारी जैसी विकराल होती जा रही समस्या की भी इसमें अनदेखी ही की गई।
जबकि एक थिंक टैंक के व्यापक मतदान-पूर्व सर्वेक्षण से यह सामने आया है कि बेरोजगारी और महंगाई इस समय मतदाताओं को परेशान कर रहीं दो सबसे बड़ी समस्याएं हैं। यह दीगर बात है कि विपक्षी दल भी इन मुद्दों पर मतदाताओं के मन में अपनी ज्यादा साख नहीं बना पाए हैं। मगर बात सिर्फ चुनाव की नहीं है। मुद्दा सीधे भारत के भविष्य से जुड़ा है। इसी महीने विश्व बैंक ने चेतावनी दी है कि भारत अन्य दक्षिण एशियाई देशों की तरह ही अपनी तेजी से बढ़ती कामकाजी उम्र की आबादी के लिए पर्याप्त नौकरियां पैदा नहीं कर रहा है।
नतीजतन नौजवान आज भी सरकारी नौकरियों के मोहताज हैं। लेकिन निजीकरण के साथ ये अवसर भी तेजी से सिमटते चले गए हैँ। आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक भारत की 1.4 अरब आबादी में से आधे से अधिक लोग 30 वर्ष से कम उम्र के हैं। इन लोगों की प्राथमिक चिंता ऐसे स्थिर रोजगार की है, जिससे उन्हें अपने घर चलाने लायक आमदनी हो। लेकिन ऐसे अवसर आबादी के बहुत छोटे हिस्से को ही उपलब्ध हैं।
इस मोर्चे पर हताशा का आलम यह है कि गजा युद्ध शुरू होने के बाद जब भारत सरकार ने इजराइल के साथ करार कर श्रमिकों को वहां भेजने की योजना बनाई, तो युद्ध के माहौल में भी वहां जाने के लिए भीड़ उमड़ पड़ी। लोग वहां यह कहते सुने गए कि ‘यहां भूखे मरने से बेहतर वहां कुछ कमाते हुए मरना है।’ ऐसे में इस मुद्दे को चुनाव में नजरअंदाज करना देश के लिए बहुत बड़ा जोखिम उठाना है। यह बात अवश्य ध्यान में रखनी चाहिए कि देश चाहे जितनी बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाए, लेकिन अगर करोड़ों युवा बेरोजगार बने रहते हैं, तो उससे असल में भारत का कोई भला नहीं होगा।