अमेरिका और इजराइल को असली झटका इस बात से लगा कि ब्रिटेन, फ्रांस, और जर्मनी के साथ-साथ यूरोपीय यूनियन से जुड़े अनेक देशों ने प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया। भारत ने भी प्रस्ताव का समर्थन किया।
इजराइल को हर हाल में संरक्षण देने की नीति के कारण अमेरिका किस तरह अलग-थलग पड़ता जा रहा है, ये बात फिलस्तीन को संयुक्त राष्ट्र की पूर्ण सदस्यता देने के प्रश्न पर महासभा में हुए मतदान से और स्पष्ट हुई है। अमेरिका के विरोध के बावजूद यह प्रस्ताव भारी बहुमत से पारित हुआ। 143 देशों ने इसका समर्थन किया, जबकि विरोध में सिर्फ नौ देश सामने आए। 25 देशों ने मतदान में हिस्सा नहीं लिया। विरोध में अमेरिका के साथ जिन देशों ने वोट डाला, वे अर्जेंटीना, चेक रिपब्लिक, हंगरी, इजराइल, माइक्रोनेशिया, पापुआ न्यू गिनी, नाउरु और पलाउ हैं। इनमें बाद वाले चार देश वो हैं, तो अक्सर अमेरिका के साथ मतदान करते हैँ। अमेरिका और इजराइल को असली झटका इस बात से लगा होगा कि फ्रांस सहित यूरोपीय यूनियन से जुड़े कुछ देशों ने भी प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया।
भारत ने भी प्रस्ताव का समर्थन किया। दुनिया में यह राय तो पहले से मजबूत होती गई है कि गजा में इजराइली नरसंहार को संरक्षण देकर अमेरिका ने अपना भारी नुकसान किया है। इससे उसका वह सॉफ्ट पॉवर क्षीण हो गया है, जो उसने लोकतंत्र और मानव अधिकारों की वकालत करके बनाई थी। गजा में 34,900 से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं, जिनमें आधे से भी ज्यादा महिलाएं और बच्चे हैं। इस इजराइली क्रूरता का कोई बचाव नहीं हो सकता। जब-तब अमेरिका ने भी इजराइल के इस मनमाने पर असंतोष जताया है, लेकिन बात जब हथियार देने या संयुक्त राष्ट्र में संरक्षण देने की हो, तो वह सब भूलकर इजराइल की ढाल बन जाता है।
जो बाइडेन सरकार के इस रुख ने अमेरिका के भीतर एक शक्तिशाली छात्र आंदोलन खड़ा कर दिया है। यूरोपीय देशों में तो इजराइल समर्थक सरकारी नीतियों को लेकर विरोध और भी तीखा है। ऐसे में इस बार अमेरिका के यूरोपीय साथियों ने भी साथ छोड़ दिया। जिस समय दुनिया में भू-राजनीतिक तनाव बढ़ रहे हैं और अमेरिका का एक प्रतिस्पर्धी खेमा खड़ा हो हो रहा है, यह अलगाव इस महाशक्ति के नुकसान का सौदा है। इसकी दीर्घकालिक महंगी कीमत उसे चुकानी पड़ सकती है।