राज्य-शहर ई पेपर व्यूज़- विचार

भोथरी हो गई संवेदना?

क्या यह आहत करने वाली बात नहीं है कि जिस देश का मीडिया अपने प्रेम संबंध के कारण भारत या पाकिस्तान चली जाने वाली किसी महिला के मामले में अनगिनत दिन चुस्की भरी चर्चाओं में गुजार देता है, उसके लिए लाखों लड़कियों का गायब होना एक सामान्य सुर्खी होता है?

पहली बार ऐसी खबर नहीं आई है। फिर भी यह ऐसी है, जिससे हर भारतीय मन को व्यग्र हो जाना चाहिए। यह खबर ये सवाल उठाती है कि क्या सचमुच भारत एक ऐसा सभ्य समाज है, जहां मानवीय गरिमा की चिंता की जाती है? ये आंकड़ा सरकार ने संसद में दिया है कि 2019 से 2021 के बीच देश में 13 लाख दस हजार लड़कियां गायब हो गईं। हम अनुमान लगा सकते हैं कि ऐसे बहुत से मामले सरकारी एजेंसियों के पास दर्ज नहीं कराए गए होंगे। यह लापता होने वाली वास्तविक लड़कियों की वास्तविक संख्या इससे कहीं अधिक हो सकती है। वैसे अगर सरकारी आंकड़ों को ही लेकर चलें, तो औसतन साढ़े छह लाख लड़कियां इस देश में हर साल गायब हो जाती हैं और फिर उनका कभी कोई अता-पता नहीं चलता। ताजा आंकड़ों के मुताबिक 2019-21 की अवधि में जो लड़कियां गायब हुईं, उनमें 10 लाख 61 हजार से अधिक बालिग उम्र की थीं। बाकी लगभग ढाई लाख नाबालिग थीं।

यहां यह स्पष्ट कर लेना जरूरी है कि ये वो लड़कियां नहीं हैं, जो परिवारों में स्वास्थ्य, पोषण और अन्य उपेक्षाओं के कारण मृत्यु का शिकार हो जाती हैं। ये वो लड़कियां हैं, जिन्हें या तो किसी संगठित गिरोह ने चुरा लिया या फिर रहस्यमय ढंग से कहीं चली गईं। यह अंदाजा भी लगाया जा सकता है कि इनमें बड़ी संख्या उनकी होगी, जिन्हें देह-व्यापार में धकेल दिया गया होगा। उनमें से अनेक को मानव तस्करों ने विदेश भेज दिया होगा। क्या यह विवेक को आहत करने वाली बात नहीं है कि जिस देश का मीडिया अपने प्रेम संबंध को कारण पाकिस्तान से भारत या भारत से पाकिस्तान चली जाने वाली किसी महिला के मामले में अनगिनत दिन चुस्की भरी चर्चाओं में गुजार देता है, उसके लिए लाखों लड़कियों का गायब होना महज एक दिन की सुर्खी होता है? और मंत्री भी संसद में सामान्य सूचना की तरह ऐसी जानकारियां देते हैं, जिसे वहां मौजूद तमाम राजनेता आम बात के रूप में ग्रहण करते हैं? स्पष्टतः यह भारतीय समाज की भोथरी होती चली गई संवेदना की ही एक मिसाल है।

Tags :
Published
Categorized as Editorial1

By NI Editorial

The Nayaindia editorial desk offers a platform for thought-provoking opinions, featuring news and articles rooted in the unique perspectives of its authors.

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *