नरेंद्र मोदी पहली बार गठबंधन की सरकार चला रहे हैं और इसकी चुनौतियां उनको परेशान कर रही हैं। सरकार को अपने कई फैसलों से पीछे हटना पड़ा है।
यह संयोग है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने प्रधानमंत्री के 74वें जन्मदिन के दिन ही एक सौ दिन पूरे किए हैं। एक तरफ एक सौ दिन की उपलब्धियों का गुणगान है तो दूसरी ओर प्रधानमंत्री के जन्मदिन की बधाइयां और शुभकामनाएं हैं। अखबार सेवा सप्ताह शुरू होने के विज्ञापनों से भरे पड़े हैं। प्रधानमंत्री ने अपने जन्मदिन के रोज ओडिशा में हजारों करोड़ रुपए की परियोजनाओं का उद्घाटन और शिलान्यास किया। इससे एक दिन पहले अपने गृह राज्य में एक कार्यक्रम में प्रधानमंत्री ने दावा किया कि पहले सौ दिन में ही उनकी सरकार ने 15 लाख करोड़ रुपए की परियोजनाएं शुरू कर दी है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने सरकार के सौ दिन पूरे होने पर मंगलवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस करके सरकार की उपलब्धियों का ब्योरा दिया।
वैसे जो सरकार 10 साल से ज्यादा समय से चल रही हो उसके सौ दिन के कामकाज का ब्योरा देने का कोई मतलब नहीं होता है। लेकिन चूंकि इस बार पहली बार मोदी को गठबंधन की सरकारी चलानी पड़ रही है और सहयोगी पार्टियों के प्रत्यक्ष या परोक्ष दबाव में फैसले करने पड़ रहे हैं या किए गए फैसलों को निरस्त करना पड़ रहा है तो पार्टी ने उपलब्धियों का ढिंढोरा पीटने की ज्यादा जरुरत महसूस की होगी। इसके जरिए यह भी बताया जा रहा है कि सरकार दबाव में नहीं है। वह न तो गठबंधन के दबाव में है और न विपक्ष को मजबूत होने से वह किसी तरह का दबाव महसूस कर रही है।
परंतु सरकार भले चाहे जो मैसेज बनवाए लेकिन हकीकत यह है कि वह विपक्ष के मजबूत होने और गठबंधन की वजह से दबाव महसूस कर रही है। तभी उसे वक्फ बोर्ड बिल को संयुक्त संसदीय समिति में भेजने का फैसला करना पड़ा। उसने सरकारी सेवाओं में लैटरल एंट्री के मसले पर यू टर्न लिया और केंद्र सरकार के कर्मचारियों की पेंशन के मामले में भी उसे अपना पुराना रुख बदलना पड़ा। वह जातीय जनगणना के लिए भी तैयार होती दिख रही है। केंद्रीय एजेंसियों की कार्रवाई भी धीमी हुई है और लोकसभा चुनाव में भाजपा की सीटें कम होने और गठबंधन की सरकार बनने के एक सौ दिन के भीतर ही सारे विपक्षी नेता जेल से बाहर आ गए हैं। जाहिर है उसने व्यावहारिक रुख दिखाते हुए कई समझौते किए हैं। हालांकि सरकार वक्फ बोर्ड बिल से लेकर समान नागरिक संहिता और ‘एक देश, एक चुनाव’ जैसे विवादित मसलों पर आगे बढ़ने को तैयार दिख रही है। तभी यह देखना दिलचस्प होगा कि आगे सरकार विवादित राजनीतिक मसलों को किस तरह से साधती है।