सुरक्षा के मोर्चे पर चुस्ती और सख्ती के तमाम दावों के बावजूद देश में आतंक का माहौल क्यों लौट रहा है? झूठी धमकियां देने वालों या हमले की तैयारी में लगे समूहों के बारे में खुफिया एजेंसियां पूर्व सूचना क्यों नहीं जुटा पा रही हैं?
जम्मू-कश्मीर में निर्वाचित सरकार के पद संभालने के कुछ दिनों के अंदर ही आतंकवादियों ने कहर ढाया है। श्रीनगर-लेह राजमार्ग पर सोनमर्ग के पास रविवार को उनके हमले में सात लोग मारे गए। इनमें ज्यादातर दूसरे राज्यों से आए कर्मी हैं, जो वहां निर्माण कार्य में लगे थे। दो बातें खास हैं। कश्मीर घाटी में जारी निर्माण कार्यों से संबंधित स्थल पर हाल के वर्षों में हुआ यह पहला हमला है। फिर यह वहां हुआ, जिसके बारे में पिछले एक दशक से माना जाता था कि वह इलाका आतंकवाद के साये से मुक्त हो चुका है। बताया गया है कि ताजा हमला पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवादियों ने किया।
जिस रोज यह हमला हुआ, उसी दिन नई दिल्ली के रोहिणी इलाके में सीआरपीएफ पब्लिक स्कूल के बाहर बम धमाका हुआ, जिससे स्कूल परिसर की बाउंड्री वॉल क्षतिग्रस्त हो गई। प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन खालिस्तान जिंदाबाद फोर्स ने इस हमले की जिम्मेदारी ली है। उधर रविवार को ही 25 उड़ानों के दौरान उनमें बम होने की धमकी मिली, जिस वजह से उनकी इमरजेंसी लैंडिग करानी पड़ी। इसके पहले शनिवार को 30 से ज्यादा उड़ानों को ऐसी धमकियां मिली थीं। ये सभी फर्जी निकलीं, मगर दोनों दिन इनकी वजह से हवाई यात्राएं बाधित हुईं और यात्रियों को परेशानी का सामना करना पड़ा। दरअसल, थोड़ा पीछे जाकर देखें, तो काफी समय से राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में स्कूलों और अस्पतालों में बम होने की धमकियां मिल रही हैं।
अब तक ये धमकियां फर्जी साबित हो रही थीं, लेकिन रविवार को आखिरकार सचमुच विस्फोट हो गया। ऐसी घटनाओं ने देश में आतंक का माहौल लौटा दिया है। इससे सवाल उठा है कि सुरक्षा के मोर्चे पर चुस्ती और सख्ती के तमाम दावों के बावजूद देश में ये माहौल क्यों लौट रहा है? झूठी धमकियां देने वालों या हमले की तैयारी में लगे समूहों के बारे में खुफिया एजेंसियां पूर्व सूचना क्यों नहीं जुटा पा रही हैं? जम्मू-कश्मीर का मामला ज्यादा गंभीर है। जम्मू क्षेत्र आतंकवादी हमलों के नए ठिकाने के रूप में उभरा है, जबकि अब कश्मीर घाटी में भी ऐसी वारदातों ने फिर सिर उठा लिया है। आखिर क्यों?