विश्व नेताओं के सामने धुर-दक्षिणपंथ की उठती लहर की चुनौती है, जिसे सीधे तौर पर चार दशकों से अपनाई गई नव-उदारवादी आर्थिक नीतियों का परिणाम माना गया है। अब टैक्स की ऊंची दर को इसका एक समाधान समझा जा रहा है।
हाल में इटली से आई इस खबर ने सबको चौंकाया कि वहां की धुर-दक्षिणपंथी प्रधानमंत्री जियोर्जिया मेलोनी की सरकार ने विदेशों में कमाए गए धन पर लगने वाले टैक्स को दो गुना कर दिया है। इटली सबसे कम टैक्स रेट वाले देशों में रहा है। इस रूप में वह उन देशों में है, दुनिया भर के अति धनी लोगों में जहां की नागरिकता लेने की होड़ रही है। मगर अब देश का मूड बदल चुका है। आर्थिक मामलों के मंत्री जियांकार्लो जियोर्गेती ने कहा कि विभिन्न देश “वित्तीय लाभ” का ऑफर देने की होड़ में शामिल हों, इटली इस विचार के खिलाफ है। और ये मूड सिर्फ इटली में नहीं है। सुपर रिच लोगों पर टैक्स की एक न्यूनतम वैश्विक दर होनी चाहिए, इस बात की वकालत अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन भी करते रहे हैं, ये और बात है कि उनके प्रशासन ने इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया। मगर अब ब्राजील की अध्यक्षता में जी-20 समूह में ऐसी पहल होने की संभावना बनी है।
कुछ समय पहले वहां जी-20 के वित्त मंत्रियों की बैठक हुई। उस मौके पर 19 देशों के पूर्व शासनाध्यक्ष भी जुटे। उन्होंने एक साझा बयान में जी-20 देशों से अति धनी लोगों पर टैक्स बढ़ाने का आह्वान किया। ब्राजील के राष्ट्रपति लुइज नेसियो लूला दा सिल्वा की पहल पर मशहूर फ्रेंच अर्थशास्त्री गैब्रियेल जुकमैन इस बारे में एक विस्तृत रिपोर्ट पेश कर चुके हैं। नवंबर में होने वाले जी-20 शिखर सम्मेलन में यह चर्चा का प्रमुख मुद्दा होगा। विश्व नेताओं के सामने लगभग हर लोकतांत्रिक देश में धुर-दक्षिणपंथ की उठती लहर की चुनौती है, जिसे सीधे तौर पर वहां चार दशकों से अपनाई गई नव-उदारवादी आर्थिक नीतियों का परिणाम माना गया है। इस सामाजिक उथल-पुथल पर काबू पाने के लिए समझ बनी है कि आर्थिक विकास के लाभ में आम जन को सहभागी बनाना अपरिहार्य हो गया है। इस उभरती आम-सहमति पर गौर करें, तो भारत में चल रहा विमर्श बेहद पिछड़ा हुआ नजर आएगा। अब देखने की बात होगी कि जी-20 शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस मुद्दे पर क्या रुख अपनाते हैँ।