गुजरात के सूरत में एक साथ सत्ता पक्ष की बेलगाम और अनैतिक ताकत, कर्त्तव्य-निष्ठा के समझौता करने को तैयार प्रशासन, और लोकतांत्रिक प्रक्रिया को पटरी से उतारने में सहायक बना विपक्ष- देखने को मिले।
गुजरात की सूरत लोकसभा सीट पर जैसे चुनाव संपन्न हुआ, उसे भारतीय लोकतंत्र के लिए अपशकुनकारी घटना माना जाएगा। वहां एक साथ सत्ता पक्ष की बेलगाम और अनैतिक ताकत, कर्त्तव्य-निष्ठा के समझौता करने को तैयार प्रशासन, और लोकतांत्रिक प्रक्रिया को पटरी से उतारने में सहायक बना विपक्ष- देखने को मिले। यह हैरतअंगेज है कि परचा दाखिल करने वाला एक भी उम्मीदवार मैदान में टिके रहने को तैयार नहीं हुआ।
भारतीय जनता पार्टी के नेताओं ने सार्वजनिक तौर पर कहा है कि कांग्रेस के प्रमुख और डमी उम्मीदवारों के परचे खारिज होने के बाद बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी समेत आठ अन्य उम्मीदवार से उन्होंने संपर्क किया और उन्हें परचा वापस लेने के लिए “राजी” कर लिया। यह बड़ी अजीब बात है कि कांग्रेस उम्मीदवार नीलेश कुंभाणी ने अपने लिए जो तीन प्रस्तावक ढूंढे, उन तीनों ने हलफनामा देकर कह दिया कि कुंभाणी के परचे पर उनके दस्तखत फर्जी हैं। ऐसा ही डमी उम्मीदवार सुरेश पडसाला के साथ हुआ। कुंभाणी का आचरण इतना संदिग्ध है कि मंगलवार को कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने उनके निवास पर प्रदर्शन किया।
उन्होंने उनके घर पर “जनता का गद्दार” लिख डाला। सवाल है कि कांग्रेस नेतृत्व ने ऐसे व्यक्ति को कैसे लोकसभा जैसे महत्त्वपूर्ण चुनाव में अपना उम्मीदवार बनाया? यह भी कम आशर्चजनक नहीं है कि परचा खारिज होने के बाद से कुंभाणी और उनके तीनों प्रस्तावक “गायब” हैं। अगर उन्होंने अंदरखाने कोई समझौता नहीं किया है, तो उनका सामान्य व्यवहार यह होना चाहिए कि वे चुनाव अधिकारी के निर्णय को अदालत में चुनौती देने की तैयारी करते।
तो फिलहाल कुल तस्वीर यह उभरती है कि जो पार्टियां ‘लोकतंत्र और संविधान बचाने’ के नाम पर आज भाजपा से लड़ते का दंभ भरती हैं, उनके अंदर कई छिद्र हैं। उधर प्रशासन और संवैधानिक- वैधानिक संस्थाएं सिस्टम को पटरी से उतारने की कोशिशों को रोकने के बजाय खुद उसमें सहायक बनती जा रही हैं। ऐसे में भाजपा- जिसके पास आज अकूत संसाधन और समाज के प्रभु वर्ग का पूरा समर्थन है- लोकतंत्र के प्रति अपनी न्यूनतम जिम्मेदारी से भी समझौता करती दिख रही है। 2024 का आम चुनाव इन रुझानों का गवाह बन रहा है।