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विश्वास हो कैसे बहाल?

मतदान

सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय अंतिम होता है। इसलिए उसने जो व्यवस्थाएं दी हैं, अब उन पर ही अमल किया जाएगा। फिर भी यह कहा जाएगा कि इस फैसले से मतदान प्रक्रिया पर देश के अनेक हलकों में उठे संदेहों का निवारण नहीं हुआ है।

सुप्रीम कोर्ट ने सभी वीवीपैट पर्चियों की गिनती करने की गुजारिश ठुकरा दी। इसके बजाय उसने निर्वाचन आयोग को यह पता लगाने को कहा है कि क्या वीवीपैट पर्चियों पर बारकोड डालने के बाद उन सबकी मशीन से गिनती कराई जा सकती है। ईवीएम में चुनाव निशान लोड करने वाली यूनिट को चुनाव के 45 दिन बाद तक उपलब्ध रखने का निर्देश कोर्ट ने दिया है। इसके अलावा उसने कहा है कि पराजित उम्मीदवार चाहें, तो अपने खर्च पर किन्हीं पांच ईवीएम की ‘बर्न्ट मेमरी’ की जांच करवाने की मांग कर सकते हैं।

विपक्षी दलों की प्रतिक्रिया से साफ है कि वे इस निर्णय से संतुष्ट नहीं हैं। उन्होंने सभी वीवीपैट पर्चियों की गिनती कराने के लिए “अपना संघर्ष जारी रखने” का एलान किया है। उधर कोर्ट की कुछ टिप्पणियों ने सिविल सोसायटी में बेचैनी पैदा की है। मसलन, जस्टिस दीपांकर दत्त ने दायर याचिकाओं के संदर्भ में कह दिया कि हाल के वर्षों में कुछ निहित स्वार्थी समूहों की तरफ से राष्ट्र की उपलब्धियों को नजरअंदाज करने के प्रयास किए जा रहे हैं। उन्होंने कहा- ‘ऐसा लगता है कि राष्ट्र की प्रगति की हर मोर्चे पर साख खत्म करने, उसे कम करके बताने और कमजोर करने की ठोस कोशिश की जा रही है।’

इसी क्रम में उन्होंने याचिकाकर्ता एक संगठन की प्रामाणिकता पर सवाल उठे दिए। सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय अंतिम होता है। इसलिए उसने जो व्यवस्थाएं दी हैं, अब उन पर ही अमल किया जाएगा। न्यायालय के उद्देश्य पर प्रश्न खड़े नहीं किए जा सकते। फिर भी यह कहा जाएगा कि इस फैसले से मतदान प्रक्रिया पर देश के अनेक हलकों में गहराते जा रहे संदेहों का निवारण नहीं हुआ है।

ईवीएम या वीवीपैट को लेकर उठे सवाल सिर्फ तकनीकी नहीं हैं। प्रश्न सिर्फ मशीनों की कुशलता या निष्पक्षता से नहीं जुड़े हैं। बल्कि इनका संबंध लोगों के यकीन से है। कुछ अविश्वासों के पीछे मुमकिन है कि तार्किक आधार ना हों। लेकिन जब इनका संबंध किसी सिस्टम की जन-वैधता से हो, तो ऐसे सवाल महत्त्वपूर्ण हो जाते हैं। उन्हें अपमान भाव से ठुकरा देने से समस्या हल नहीं हो जाती।

By NI Editorial

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