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दक्षिणी राज्यों का मोर्चा

इन राज्यों की साझा शिकायत है कि केंद्र सरकार संविधान में निहित वित्तीय संघवाद की भावना का उल्लंघन कर रही है। जीएसटी के तहत उन राज्यों से जो टैक्स वसूला जाता है, उसमें उन्हें उचित हिस्सा नहीं मिल रहा है।

कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धरमैया दल-बल के साथ नई दिल्ली पहुंचे हैं। गुरुवार को ऐसा ही मोर्चा लेकर केरल के मुख्यमंत्री पिनरायी विजयन जंतर-मंतर पहुंचेंगे। इसके ठीक पहले तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने विजयन को पत्र लिख कर कहा है कि उनका राज्य ना सिर्फ इस लड़ाई में केरल के साथ है, बल्कि इस बारे में वाम लोकतांत्रिक मोर्चा सरकार की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका के साथ खुद को भी संबंधित करेगी। इस घटनाक्रम के सार को समेटते हुए कर्नाटक के मंत्री प्रियांक खड़गे ने कहा है कि फिलहाल दक्षिणी राज्य अलग-अलग लड़ रहे हैं, लेकिन देर-सबेर उनका मोर्चा बनना तय है। संकेत हैं कि तेलंगाना भी इस संघर्ष से जुड़ेगा। इन सभी राज्यों की साझा शिकायत है कि केंद्र सरकार संविधान में निहित वित्तीय संघवाद की भावना का उल्लंघन कर रही है। जीएसटी के तहत उन राज्यों से जो टैक्स वसूला जाता है, उसमें उन्हें उचित हिस्सा नहीं मिल रहा है। स्टालिन का दावा है कि जीएसटी से पहले के समय की तुलना में तमिलनाडु को हर साल 20 हजार करोड़ रुपए का नुकसान हो रहा है।

इस महीने पेश अंतरिम बजट के प्रावधानों से दक्षिणी राज्यों में असंतोष और बढ़ा है। उन प्रावधानों टिप्पणी करते हुए पर कर्नाटक से कांग्रेस के एक सांसद ने तो यहां तक कह दिया कि अगर केंद्र का यही रवैया रहा, तो दक्षिणी राज्यो से अलग देश बनाने की मांग उठ सकती है। इस बीच उन राज्यों में 2026 में संभावित लोकसभा सीटों के परिसीमन को लेकर भी आशंका गहरा गई है। उन्हें भय है कि अगर आबादी को इसका आधार बनाया गया, तो लोकसभा में उनके प्रतिनिधित्व का अनुपात घट जाएगा, जबकि उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों के प्रतिनिधित्व में भारी इजाफा होगा। उनका कहा है कि इस तरह उन्हें बेहतर विकास करने और जनसंख्या वृद्धि पर काबू पाने की सजा मिलेगी। कहा जा सकता है कि ये सारी गंभीर शिकायतें हैं। अगर केंद्र सरकार संवेदनशील है और बन रही परिस्थिति के संभावित परिणामों को समझती है, तो उसे तुरंत दक्षिणी सरकारों से संवाद कायम करते हुए उनकी शिकायतों को दूर करना चाहिए।

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By NI Editorial

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