सोनम वांगचुक ने आगाह किया है कि तेजी से हो रहे जलवायु परिवर्तन के कारण हिमालय के ग्लेशियर पिघल रहे हैं। उनके मुताबिक हिमालय के ग्लेशियर पृथ्वी का तीसरा ध्रुव हैं। इसमें ताजा पानी का सबसे बड़ा भंडार है, जिनसे दो अरब लोगों को भोजन-पानी मिलता है।
अगस्त 2019 में जब केंद्र सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 370 को रद्द किया, तो उससे लद्दाख में खुशी की लहर दौड़ गई थी। लेकिन उससे वहां जगी उम्मीदें अब टूट चुकी हैं। एक तो अब तक अलग राज्य का दर्जा मिलने से लोग निराश हुए हैं, साथ ही उनकी शिकायत है कि उनकी मूलभूत समस्याएं गुजरे साढ़े चार वर्ष में और गहरा गई हैं। इसी बीच चीनी सेना लद्दाख में घुस आई है, जिससे वहां के चरवाहों की मुसीबत बढ़ी है। इन्हीं सब सभी सवालों को लेकर सामाजिक कार्यकर्ता और पर्यावरणविद् सोनम वांगचुक ने भूख हड़ताल शुरू की। वांगचुक की शिकायत है कि केंद्र सरकार तो उनकी बात नहीं ही सुन रही है, मीडिया ने भी उन्हें और लद्दाख की समस्याओं को नजरअंदाज कर रखा है। नतीजतन वांगचुक को सोशल मीडिया पर अपनी भूख हड़ताल के बारे में वीडियो अपडेट डालने पड़े हैं। वांगचुक ने अपने अनशन का नाम क्लाइमेट फास्ट (पर्यावरण उपवास) रखा। उनके उपवास स्थल पर हर दिन सैकड़ों लोगों ने उनके प्रति समर्थन जताने के लिए भूख हड़ताल रखी। ये सभी लोग कड़ाके की ठंड में खुले आसमान के नीचे सोते रहे हैं।
वांगचुक ने देश को आगाह किया है कि तेजी से हो रहे जलवायु परिवर्तन के कारण हिमालय के ग्लेशियर पिघल रहे हैं। उन्होंने कहा है कि लद्दाख और आसपास के हिमालय के ग्लेशियर ग्रह का तीसरा ध्रुव हैं। इसमें ताजा पानी का सबसे बड़ा भंडार है और दो अरब लोगों को भोजन-पानी मिलता है। पिघलते ग्लेशियरों का सीधा असर इतनी बड़ी आबादी पर पड़ेगा। अनुच्छेद 370 खत्म किए जाने के बाद लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया था। अब जम्मू-कश्मीर में तो विधानसभा होगी, लेकिन लद्दाख में सिर्फ स्वायत्त जिला और क्षेत्रीय परिषदें ही बनेंगी। वांगचुक अपने इलाके के लिए विधानसभा के गठन की मांग कर रहे हैं। वे लोकसभा में भी लद्दाख का प्रतिनिधित्व बढ़ाना चाहते हैं। पिछली वार्ता के दौरान केंद्रीय गृह मंत्रालय ने इन मांगों को ठुकरा दिया था। उसके बाद आंदोलन तेज हुआ है। बेहतर होगा कि लद्दाख की आवाज सुनी जाए, अन्यथा एक संवेदनशील इलाके में असंतोष पनपता रहेगा।