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भरोसा तो नहीं बंधता

आम चुनाव से ठीक पहले जब सोशल मीडिया कंपनियों ने कहा कि वे फैक्ट चेक करने की व्यवस्था कर रही हैं, तो उस पर सहज यकीन नहीं हुआ। इसका कारण उनका पुराना रिकॉर्ड है। हालिया व्यवहार भी भरोसा बंधाने वाला नहीं है।

सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स ने (जिसे पहले ट्विटर कहा जाता था) पिछले हफ्ते भारत में राजनीतिक भाषणों वालों कई ट्वीट ब्लॉक कर दिए। आम चुनाव के मद्देनजर सरकारी अधिकारियों ने एक्स को ये ट्वीट हटाने का आदेश दिया था। इस पर एक्स के मालिक इलॉन मस्क ने कहा कि वे इस आदेश से सहमत तो नहीं हैं, लेकिन चुनाव खत्म होने तक ये पोस्ट भारत के लोगों को नहीं दिखेंगे।

जाहिर है, मस्क क्या सोचते हैं, उससे व्यवहार में कोई फर्क नहीं पड़ा। शिकायत यह है कि सरकार एकपक्षीय ढंग से “आपत्तिजनक” सामग्रियों को परिभाषित करती है। इससे जहां उसके एजेंडे के पक्ष में डाली गई सामग्रियां (भले वे दूसरे लोगों को भड़काऊ लगें) सोशल मीडिया पर बनी रहती हैं, वहीं आलोचकों के पोस्ट वह हटवा देती है। इस सिलसिले में काबिल-ए-जिक्र है कि 2021 में समाचार एजेंसी एपी के हाथ कुछ दस्तावेज लगे थे।

उनसे पता चला कि फेसबुक, वॉट्सऐप और इंस्टाग्राम भारत में नफरती भाषण, गलत सूचना और भड़काऊ पोस्ट पर अंकुश लगाने के मामले में अपनी सुविधा के अनुसार फैसले लेते हैं। वे ऐसे कदम नहीं उठाते, जो सरकार को नागवार गुजरे। एपी को हाथ लगे दस्तावेजों से जाहिर हुआ कि कई सोशल मीडिया एकाउंट गलत और नफरती कंटेंट फैला रहे थे और उनमें कइयों का सत्ता पक्ष से नाता था। इसी पुराने रिकॉर्ड के कारण इस बार के चुनाव से ठीक पहले जब सोशल मीडिया कंपनियों ने कहा कि वे फैक्ट चेक करने की व्यवस्था कर रही हैं, तो उस पर सहज यकीन नहीं हुआ।

फेसबुक की संचालक कंपनी मेटा ने कहा था कि भारत के आम चुनाव को देखते हुए वह कमर कस रही है। उसने भारत में अपने थर्ड-पार्टी फैक्ट-चेकर नेटवर्क का विस्तार करने के लिए और निवेश किया है। फेसबुक ने बताया कि वह ‘टेक एकॉर्ड’ के साथ मिलकर चुनाव में भ्रामक जानकारियां फैलने से रोकेगी। ‘टेक अकॉर्ड’ टेक क्षेत्र की 20 दिग्गज कंपनियों की साझेदारी है, जिसमें उन्होंने 2024 में हो रहे सभी चुनावों में खतरनाक और नुकसानदेह कंटेंट से निपटने का इरादा जताया है। मगर एक्स के ताजा व्यवहार से इस इरादे पर सवाल गहरा गए हैँ।

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By NI Editorial

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