प्रश्न यह है कि अगर किसी पार्टी ने अपना संविधान बदल दिया हो, तो पुराना संविधान किसी फैसले का आधार कैसे हो सकता है? यह विवाद का मुद्दा है। इसका अप्रिय पक्ष यह है कि इससे स्पीकर के पद पर विवाद गहराया है।
महाराष्ट्र विधानसभा के स्पीकर ने वही फैसला दिया, जिसका शिवसेना के उद्धव ठाकरे गुट की तरफ से पहले से अनुमान लगाया जा रहा था। इस गुट ने एक दिन पहले ही सुप्रीम कोर्ट जाने का इरादा जता दिया था। फैसला आने के बाद पार्टी ने इसे लोकतंत्र की हत्या बताया और एलान किया कि वह इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देगी। जाहिर है, इस गुट को स्पीकर राहुल नार्वेकर की निष्पक्षता पर भरोसा नहीं था। ठीक ऐसी ही धारणा कई और हलकों में थी। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि नार्वेकर ने अपना फैसला जिस आधार पर दिया, उससे इन हलकों में पहले से मौजूद संदेह को दूर करने में कोई मदद नहीं मिलेगी। नार्वेकर ने शिंदे बनाम उद्धव ठाकरे गुट में जारी विवाद पर फ़ैसला सुनाते हुए कहा कि शिंदे गुट ही असली शिवसेना मानी जाएगी। उन्होंने कहा कि 21 जून 2022 को शिवसेना में फूट पड़ गई। उस समय उद्धव ठाकरे गुट के सचेतक सुनील प्रभु ने व्हिप जारी किया था। लेकिन नार्वेकर ने कहा कि जब उन्होंने यह कदम उठाया, तब वे सचेतक नहीं रह गए थे।
नार्वेकर ने ये फ़ैसला शिवसेना पार्टी के 1999 के संविधान के आधार पर दिया है। जबकि उद्धव ठाकरे गुट ने अपना 2018 का संविधान नार्वेकर को सामने पेश किया था। उपलब्ध जानकारियों के मुताबिक 1999 के संविधान में प्रावधान है कि राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य शिवसेना का नेतृत्व करेंगे, जबकि 2018 में कहा गया कि पार्टी प्रमुख का फ़ैसला ही पार्टी का फ़ैसला होगा। लेकिन प्रश्न यह है कि अगर किसी पार्टी ने अपना संविधान बदल दिया हो, तो पुराना संविधान किसी फैसले का आधार कैसे हो सकता है? यह विवाद का मुद्दा है। इसका अप्रिय पक्ष यह है कि इससे स्पीकर के पद पर विवाद गहराया है। जिस समय तमाम पद और संस्थाओं पर एकपक्षीय होने का संदेह गहराता जा रहा है, इस विवाद से यह माहौल और संगीन होगा। इस नतीजे से एकनाथ शिंदे गुट के 16 विधायकों को राहत मिली है। वहीं ठाकरे गुट को झटका लगा है और उद्धव ठाकरे ने तो अब सवाल उठा दिया है कि भारत में लोकतंत्र रहेगा कि नहीं?