बांग्लादेश के अनुरोध से भारत को संवेदनशीलता और उच्च कूटनीतिक कौशल से निपटना होगा। भारत सरकार शेख हसीना को अपनी जुबान बंद करने पर राजी करे, तो यह काम आसान हो सकता है। उनके बयानों से बांग्लादेश में माहौल ज्यादा भड़का है।
अभी तक बांग्लादेश से भारत के लिए आई चुनौतियां वहां साढ़े चार महीने पहले बने माहौल से संबंधित थीं। मगर अब इसने ठोस कूटनीतिक रूप ले लिया है। भारत सरकार के सामने यह नई कूटनीति चुनौती है। इसका रूप बहुआयामी है। बांग्लादेश की एक अदालत ने पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना वाजेद पर “मानवता के खिलाफ अपराधों” के मुकदमे के सिलसिले में वारंट जारी किया। उसका अनुपालन करते हुए बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने भारत को कूटनीतिक पत्र भेज कर शेख हसीना को वापस भेजने की मांग की है। चूंकि दोनों देशों के बीच प्रत्यर्पण संधि पहले से मौजूद है, इसलिए भारत सरकार के लिए इस अनुरोध पत्र को ठुकराना आसान फैसला नहीं होगा।
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हालांकि उस संधि में राजनीतिक प्रकार के मामलों में अनुरोध ठुकराने का प्रावधान है और बेशक शेख हसीना का मामला सियासी है, परंतु वैसे कदम का बांग्लादेश से संबंध पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। पहले ही बांग्लादेश की अंतरिम सरकार पाकिस्तान के साथ अपने रिश्तों को अधिक महत्त्व दे रही है। पिछले हफ्ते काहिरा में डी-8 ग्रुप की बैठक के दौरान बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार मोहम्मद युनूस पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ से मिले। इसमें खास बात यह रही कि शरीफ ने बांग्लादेश से रणनीतिक संबंध बनाने का इरादा जाहिर किया, वहीं युनूस ने बांग्लादेश की पुरानी मांग छोड़ दी कि ऐसा होने के पहले बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम के समय किए अत्याचार और मानवता के खिलाफ अपराधों के लिए पाकिस्तान माफी मांगे।
परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में सहयोग पर दोनों देश पहले ही राजी हो चुके हैं। बांग्लादेश का इस तरह पाकिस्तान से जुड़ना कतई भारत के हित में नहीं है। इससे 1971 के पहले जैसी स्थितियां बन जाएंगी। इसलिए बांग्लादेश के नए अनुरोध से भारत को संवेदनशीलता और उच्च कूटनीतिक कौशल से निपटना होगा। भारत सरकार अगर शेख हसीना को अपनी जुबान बंद करने पर राजी करे, तो यह काम आसान हो सकता है। उनके बयानों से बांग्लादेश में माहौल ज्यादा भड़का है। कोशिश वहां की जन भावनाओं का ख्याल करने की होनी चाहिए। वरना, पूरबी सरहद की तरफ भी पाकिस्तान से जुड़ी चुनौती ठोस रूप ले सकती है।