मोहम्मद युनूस ने शेख हसीना को प्रत्यर्पित कराने का इरादा जताया है। बांग्लादेश में शेख़ हसीना के हटने के बाद से युनूस की अंतरिम सरकार ने पहले भी कई ऐसे कदम उठाए हैं, जिन्हें भारत के हित में नहीं माना जा सकता।
बांग्लादेश के मुख्य सलाहकार (जिनके हाथ में वास्तविक सत्ता है) मोहम्मद युनूस की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को प्रत्यर्पित कराने की ताजा घोषणा से भारत-बांग्लादेश रिश्तों में एक और पेच पड़ने का अंदेशा है। युनूस ने बांग्लादेश में अंतरिम सरकार के 100 दिन पूरा होने के मौके पर राष्ट्र के नाम संबोधन में कहा कि उनकी सरकार भारत से हसीना को वापस भेजने को कहेगी, ताकि जुलाई-अगस्त के छात्र आंदोलन में हुई मौतों के लिए उनकी जवाबदेही तय की जा सके। बांग्लादेश यह मांग औपचारिक रूप से सामने रखता है, तो भारत के लिए एक बड़ा असमंजस पैदा होगा। वैसे भी बांग्लादेश में शेख़ हसीना के हटने के बाद से कई ऐसी घटनाएं हुई हैं, जिन्हें भारत के हित में नहीं माना जा सकता।
अभी पिछले हफ्ते ही पाकिस्तान का एक मालवाहक पोत कराची से चल कर बांग्लादेश के दक्षिणपूर्वी तट पर स्थित चटगांव बंदरगाह पर पहुंचा। 1971 में बांग्लादेश के मुक्ति युद्ध के बाद से दोनों देशों में पहली बार सीधा समुद्री संपर्क हुआ है। इससे पहले दोनों देशों के बीच समुद्री व्यापार सिंगापुर या कोलंबो के ज़रिए होता था। खुद बांग्लादेश ने इस घटना को पाकिस्तान के साथ द्विपक्षीय संबंधों में महत्त्वपूर्ण क़दम की शुरुआत बताया है। कहा है कि इस रूट पर समुद्री संपर्क बनना दोनों देश के बीच सप्लाई चेन को आसान बनाएगा, परिवहन के समय में कमी आएगी और आपसी व्यवसाय के लिए नए अवसरों के दरवाज़े खुलेंगे।
यह निर्विवाद है कि यह सीधा समुद्री संपर्क पाकिस्तान और बांग्लादेश के राजनयिक रिश्तों में एक ऐतिहासिक बदलाव का संकेत है। इसके पहले खबर आई थी कि दोनों देश एक परमाणु सहयोग समझौते पर बातचीत कर रहे हैं, जिसके तहत पाकिस्तान परमाणु बिजली संयंत्र लगाने में बांग्लादेश की मदद करेगा। स्पष्टतः युनूस की अंतरिम सरकार ने पाकिस्तान से रिश्तों में गर्माहट लाने की दिशा में ठोस कदम उठाए हैं। यह घटनाक्रम भारत के लिए चिंता का पहलू है। आम संबंधों के साथ दोनों देशों के उग्रवादी तत्वों के बीच संपर्क बनना भी आसान हो सकता है। लेकिन इस मामले में भारत कुछ कर सकने की स्थिति में नहीं दिखता।