इस सोमवार पुतिन ने मंगोलिया की यात्रा की, जो आईसीसी का सदस्य है। इस यात्रा से ठीक पहले आईसीसी ने स्पष्ट किया कि पुतिन के आने पर मंगोलिया उन्हें गिरफ्तार करने के लिए बाध्य है। मगर पुतिन का मंगोलिया में भव्य स्वागत किया गया।
अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (आईसीसी) के रसूख और रुतबे पर स्थायी किस्म का प्रहार हुआ है। इस संस्था ने रूसी राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतिन को युद्ध अपराध का दोषी ठहराते हुए उनकी गिरफ्तारी का वारंट जारी किया था। तब से पुतिन किसी ऐसे देश में नहीं गए, जो आईसीसी का सदस्य हो। लेकिन इस सोमवार उन्होंने मंगोलिया की यात्रा की, जो आईसीसी का सदस्य है। पुतिन की यात्रा से ठीक पहले आईसीसी ने स्पष्ट किया कि पुतिन के वहां आने पर मंगोलिया उन्हें गिरफ्तार करने के लिए बाध्य है। मगर पुतिन का मंगोलिया में भव्य स्वागत किया गया। उन्हें राजकीय अतिथि का सम्मान मिला। उनके साथ मंगोलिया सरकार ने कई समझौतों पर दस्तखत किए। तो अब प्रश्न है कि आईसीसी का क्या रुतबा बचा है? यहां याद करना उचित होगा कि पिछले वर्ष ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में भाग लेने पुतिन इसी वारंट के कारण दक्षिण अफ्रीका नहीं जा सके थे। हालांकि दक्षिण अफ्रीका सरकार ने कहा था कि वह आईसीसी के वारंट की तामील नहीं करेगी, मगर वहां के सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि दक्षिण अफ्रीका ऐसा करने के लिए बाध्य है।
इससे बनी परिस्थितियों में पुतिन ने अपनी यात्रा टाल दी। उससे आईसीसी की प्रतिष्ठा बच गई थी। लेकिन मंगोलिया ने उसे धूल में मिला दिया है। ऐसा वह क्यों कर सका, यह गंभीर विचार का विषय है। जाहिर है, इसके लिए आईसीसी एवं अन्य अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं की साख पर लगा बट्टा भी जिम्मेदार है। यह शिकायत वाजिब है कि आईसीसी ने पुतिन के खिलाफ वारंट जारी करने में तत्परता दिखाई, लेकिन उसने वही तेजी इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के मामले में नहीं दिखाई है। इससे ग्लोबल साउथ के देशों में राय बनी है कि अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं पश्चिमी हितों के मुताबिक काम करती हैं। युद्धों और वैश्विक विवादों का हल ढूंढने में इन संस्थाओं की नाकामी भी तेजी से उनकी साख खत्म कर रही है। लेकिन यह चिंताजनक है। ये संस्थाएं इसलिए बनी थीं, ताकि दुनिया में तनाव काबू में रहे और वैश्विक मूल्यों पर अमल सुनिश्चित हो सके। मगर अब इन संस्थाओं प्रासंगिकता को क्षीण करने के सुविचारित प्रयास हो रहे हैं।