russia ukraine war: रणनीति शायद यह है कि भारत पर दोनों तरफ में किसी एक पक्ष को चुनने के लिए दबाव बढ़ाया जाए। जेलेन्स्की प्रशासन जो कह रहा है, वह सिर्फ उसकी ही राय हो, ऐसा समझना भी कठिन है। (russia ukraine war)
यूक्रेन भारत पर यकीन जता रहा है या दबाव बढ़ा रहा है, यह विचारणीय है। भारत से उसे क्या अपेक्षा है, इसे राष्ट्रपति वोलोदीमीर जेलेन्स्की ने उस समय भी जताया था, जब पिछले महीने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कीव की यात्रा की थी। अब नई दिल्ली स्थित यूक्रेन के राजदूत ओलेक्सांद्र पॉलिशचुक ने इसे सार्वजनिक किया है कि मोदी से जेलेन्स्की ने क्या कहा था। एक अंग्रेजी अखबार को दिए इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि स्विट्जरलैंड में बीते जून में यूक्रेन युद्ध पर हुए सम्मेलन में पारित प्रस्ताव पर भारत दस्तखत करे, यह जेलेन्स्की प्रशासन चाहता है।
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सम्मेलन में रूस को नहीं बुलाया गया
स्विस सम्मेलन में भारत ने आधिकारिक के स्तर पर हिस्सा लिया था। लेकिन वहां पास प्रस्ताव पर दस्तखत करने से उसने इनकार कर दिया। बताया गया कि चूंकि उस सम्मेलन में रूस को नहीं बुलाया गया था, इसलिए उसने प्रस्ताव पर हस्ताक्षर नहीं किए। हालांकि मीडिया रिपोर्टों में यह चर्चा भी हुई थी कि वो प्रस्ताव इतना अधिक रूस विरोधी था कि भारत ने उससे खुद को जोड़ना उचित नहीं समझा। ऐसे में तीन महीने बाद भारत उस पर अपनी सहमति देगा, इसकी संभावना कम है।
भारत की संभावित भूमिका की चर्चा की
पॉलिशचुक ने मध्यस्थ के रूप में भारत की संभावित भूमिका की चर्चा की। जबकि हकीकत यह है कि भारत उस प्रस्ताव से सहमत हुआ, तो फिर रूस पर भारत का जो कथित प्रभाव है, वह रह ही नहीं जाएगा। ऐसा नहीं है कि जेलेन्स्की इस बात से परिचित ना हों। इसके बावजूद उनकी रणनीति शायद यह है कि भारत पर दोनों तरफ में किसी एक पक्ष को चुनने के लिए दबाव बढ़ाया जाए।
जेलेन्स्की प्रशासन जो कह रहा है, वह सिर्फ उसकी ही राय हो, ऐसा समझना भी कठिन है। इसलिए यह प्रश्न प्रासंगिक हो जाता है कि क्या पश्चिमी देश जेलेन्स्की के जरिए भारत को संदेश दे रहे हैं कि दोनों पक्षों की तरफ रहने का दौर अब अपनी सीमा के करीब पहुंच गया है? इसलिए सिलसिले में यह याद करना भी उचित होगा कि जुलाई में जब मोदी ने मास्को जाकर रूसी राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतिन को गले लगाया था, तो उस पर अमेरिका ने बहुत तीखी प्रतिक्रिया जताई थी।