व्लादीमीर पुतिन की यह टिप्पणी इसलिए महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि यूक्रेन के समर्थक पश्चिमी देशों- खासकर अमेरिका में भी युद्ध खत्म कराने के उपायों पर चर्चा होने लगी है। वहां ये आम धारणा बन गई है कि यूक्रेन अब जीत सकने की स्थिति में नहीं है।
अध्यक्ष भारत की पहल पर हुई जी-20 के नेताओं की ऑनलाइन बैठक में दिया गया रूस के राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतिन का भाषण इस लिहाज से अहम रहा कि उसमें उनकी तरफ से पहली बार ‘यूक्रेन की त्रासदी’ का अंत करने की चर्चा की गई। पुतिन ने कहा- ‘निश्चित तौर पर सैनिक कार्रवाईयां हमेशा ही त्रासद होती हैं। और अब निश्चित रूप से हमें यह सोचना चाहिए कि ये त्रासदी कैसे रुकेगी। जहां तक रूस का सवाल है, उसने यूक्रेन के साथ शांति वार्ता से कभी इनकार नहीं किया है।’ पुतिन की यह टिप्पणी इसलिए महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि यूक्रेन के समर्थक पश्चिमी देशों- खासकर अमेरिका में भी युद्ध खत्म कराने के उपायों पर चर्चा होने लगी है। वहां ये आम धारणा बन गई है कि यूक्रेन अब जीत सकने की स्थिति में नहीं है। इस वर्ष गर्मियों में उसने नाटो (उत्तर अटालांटिक संधि संगठन) के पूरे समर्थन जो जवाबी हमला किया, वह एक गलत दांव साबित हुआ। उसमें उसके हजारों सैनिक मारे गए और वह अपना एक भी सैनिक लक्ष्य हासिल नहीं कर पाया। इसको लेकर यूक्रेन में मतभेद गहराते चले गए हैं।
इसी दौरान राष्ट्रपति वोलोदीमीर जेलेन्स्की ने देश के सेना प्रमुख को बर्खास्त कर दिया। चूंकि यूक्रेन के जरिए रूस को परास्त करने की रणनीति अब कामयाब होती नहीं दिखती, इसलिए अमेरिका में यूक्रेन को आगे और मदद देने के सवाल पर राजनीतिक विवाद गहरा गया है। विपक्षी रिपब्लिकन पार्टी अब किसी सहायता प्रस्ताव को समर्थन देने के मूड में नहीं है। वहां के कुछ रणनीतिकारों ने टीवी चर्चाओं में आकर यूक्रेन को सलाह दी है कि वह अपने गंवाए इलाकों को वापस पाने की बात छोड़ दे और फिलहाल जितना उसके पास है, उसे बचाने की चिंता करे। जाहिर है, पुतिन ने इस स्थिति को अपने लिए अनुकूल माना है। इसके मद्देनजर उन्होंने ऐसा बयान दिया है, जिसे शांति वार्ता की परोक्ष पेशकश समझा जा सकता है। जेलेन्स्की को इस प्रस्ताव मंजूर होगा या नहीं, कहना कठिन है। लेकिन अमेरिकी नेतृत्व ने अगर इस मसले से निकलने का मन बनाया, तो संभवतः उनके पास कोई और विकल्प भी नहीं रह जाएगा।