पिछले वित्त वर्ष में रिटेल सेक्टर के कारोबार में चार प्रतिशत की गिरावट आई। कोरोना महामारी के बाद इस क्षेत्र में उछाल देखने को मिला था। लेकिन वह दौर गुजर चुका है। रिटेल सेक्टर में मंदी की पुष्टि दूसरे आंकड़ों से भी होती है।
संगठित रिटेल सेक्टर पिछले वित्त वर्ष (2023-24) किन हालात से गुजरा, इसकी एक झलक अब सामने आई है। ये खबर आम भारतीयों की माली हालत का एक आईना भी है। पिछले वित्त वर्ष में संगठित रिटेल सेक्टर में हजारों कर्मचारियों की छंटनी की गई। सिर्फ पांच बड़े रिटेलर्स- रिलायंस इंडस्ट्रीज की रिटेल शाखा, टाइटन, रेमंड, पेज और स्पेन्सर्स ने अपने 52 हजार कर्मचारी हटा दिए। रिटेल सेक्टर में कर्मचारियों की कटौती की सूचना खुद कंपनियों की वार्षिक रिपोर्ट से सामने आई है। अब संगठित रिटेल का यह हाल हो, तो असंगठित क्षेत्र का अंदाजा लगाया जा सकता है। उल्लेखनीय है कि कृषि के बाद रिटेल सेक्टर ही भारत में सबसे ज्यादा लोगों को रोजगार मुहैया कराता है। इस क्षेत्र के जानकारों ने कहा है कि 2022 की दिवाली के बाद से रिटेल सेक्टर मंदा पड़ने लगा। उपभोक्ताओं ने वस्त्र, लाइफस्टाइल प्रोडक्ट्स, इलेक्ट्रॉनिक्स आदि पर खर्च घटा दिए। साथ ही बाहर जाकर खाने के चलन में भी बड़ी गिरावट देखने को मिली है।
कुल मिला कर पिछले वित्त वर्ष में रिटेल सेक्टर के कारोबार में चार प्रतिशत की गिरावट आई। कोरोना महामारी के बाद इस क्षेत्र में उछाल देखने को मिला था। लेकिन वह दौर अब गुजर चुका है। रिटेल सेक्टर में मंदी की पुष्टि एक दूसरे आंकड़े से भी होती है। बीते पांच साल से इस क्षेत्र में नए स्टोर खोलने के लिए क्षेत्र विस्तार की दर गिरती चली गई है। जाहिर है, जब बाजार में मांग बढ़ रही होती है, तो नए स्टोर खुलते हैं और उनमें नई नौकरियां पैदा होती हैं। मांग का सीधा संबंध आय बढ़ने से है। जबकि भारत की असल कहानी यह है कि औसत वास्तविक आय में गिरावट दर्ज हुई है। कमरतोड़ महंगाई ने लोगों की आमदनी का मूल्य गिरा दिया है। परिणामस्वरूप कारोबार सिकुड़े हैं और नौकरियां घटी हैँ। इस तरह देश एक दुश्चक्र में फंस गया है। यह बात आम शख्स से लेकर विशेषज्ञ अर्थशास्त्रियों तक के सामने स्पष्ट है। यह सिर्फ केंद्र सरकार ही है, जो इस सच को स्वीकार नहीं करती और गढ़े गए आंकड़ों के जरिए फर्जी कथानक तैयार करने में जुटी रहती है।