क्या किसी ऐसे विकास की भी कल्पना की जा सकती है, जो सामाजिक उद्देश्यों के विपरीत जाता हो? महिलाएं हमेशा से नुकसान में रही हैं। क्या आधुनिक युग में भी उन्हें पुराने अंधकार में रहने को मजबूर करना जायज माना जाएगा?
भारत सरकार मशहूर विदेशी कंपनियों को भारी सब्सिडी देकर अपने यहां संयंत्र लगाने के लिए बुलाने की होड़ में लगी हुई है। मगर इस क्रम में कंपनियों को मनमानी की जैसी छूट दी जा रही है, उससे गंभीर प्रश्न खड़े होते हैं। भारत में एपल कंपनी के लिए फोन हांगकांग की कंपनी फॉक्सकॉन बनाती है। इसका चेन्नई में बड़ा प्लांट है। कंपनी ने वहां कर्मचारियों की नियुक्ति की जो नीति अपना रखी है, उसके बारे में अब चौंकाने वाली बातें सामने आई हैँ। अंतरराष्ट्रीय समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने अपनी एक खास रिपोर्ट खुलासा किया है कि कंपनी ने अपने यहां विवाहित महिलाओं को नौकरी देने पर रोक लगा रखी है। इसके पीछे कंपनी का तर्क हैः विवाहित महिलाएं कई तरह की समस्याएं लेकर आती हैं- मसलन, गर्भावस्था और पारिवारिक कारणों से छुट्टी की ज्यादा मांग। कंपनी ने कर्मचारियों की भर्ती का ठेका लगभग 30 एजेंसियों को दे रखा है। उन्हें साफ निर्देश है कि सिर्फ अविवाहित महिलाओं की ही भर्ती की जाए।
चेन्नई स्थित कारखाने में फोन पुर्जों की असेंबलिंग का काम होता है। इस कार्य के लिए विवाहित महिलाओं की भर्ती पर वहां लगभग पूरी रोक है। इसमें अस्थायी स्तर पर सिर्फ तभी रियायत दी गई है, जब अत्यधिक उत्पादन की अवधि आई हो। जब फोन का कोई नया संस्करण आना होता है, तब बड़े पैमाने पर उत्पादन की जरूरत होती है। उन दिनों में जरूरत के हिसाब अस्थायी कर्मचारी रखे जाते हैं। उस समय अन्य कर्मी ना मिलने की स्थिति में ही विवाहित महिलाओं को रखने की इजाजत दी गई है। यह कंपनी के लिंगभेदी नजरिए की एक दास्तां है। लेकिन इसके लिए भारत सरकार भी उतनी ही जवाबदेह है। आखिर देश के लिए श्रम नीति बनाना और उस पर अमल सुनिश्चित कराना सरकार का दायित्व है। मुद्दा यह है कि आर्थिक ग्रोथ का मकसद क्या है? क्या किसी ऐसे विकास की भी कल्पना की जा सकती है, जो सामाजिक उद्देश्यों के विपरीत जाता हो? महिलाएं भारतीय समाज में हमेशा से नुकसान की हालत में रही हैं। क्या आधुनिक युग में भी उन्हें पुराने अंधकार में रहने को मजबूर करना जायज माना जाएगा?