वित्त वर्ष 2018-19 में रिजर्व बैंक ने केंद्र को एक लाख 75 हजार करोड़ रुपये दिए। उसके बाद से हर साल दी गई ये रकम एक लाख करोड़ रुपये से कम रही, लेकिन इस बार सारा रिकॉर्ड टूट गया है।
भारतीय रिजर्व बैंक ने केंद्र सरकार को सरप्राइज गिफ्ट दिया है। इस वर्ष के बजट में केंद्र ने अपनी आमदनियों का हिसाब लगाते हुए अनुमान लगाया था कि रिजर्व बैंक से उसे एक लाख दो हजार करोड़ रुपये का लाभांश मिलेगा। लेकिन रिजर्व बैंक ने उसे दो लाख 11 हजार करोड़ रुपये देने का एलान किया है। पिछले वित्त वर्ष में केंद्र को रिजर्व बैंक से इस मद में 87 हजार करोड़ रुपये प्राप्त हुए थे। यह याद करना उचित होगा कि लाभांश लेने के सवाल पर रिजर्व बैंक और मोदी सरकार के बीच जोरदार टकराव हुआ था।
सरकार का अनुरोध स्वीकार करने के बजाय रिजर्व बैंक के तत्कालीन गवर्नर उर्जित पटेल ने इस्तीफा दे दिया था। उसके बाद विमल जालान कमेटी बनाई गई, जिसने सरकार के पक्ष में फैसला दिया। उसके बाद 2018-19 में रिजर्व बैंक ने केंद्र को एक लाख 75 हजार करोड़ रुपये दिए। उसके बाद से हर साल दी गई ये रकम एक लाख करोड़ रुपये से कम रही, लेकिन इस बार सारा रिकॉर्ड टूट गया है। ये वो आय है, जो पहले की सरकारों को हासिल नहीं होती थी।
रिजर्व बैंक की आमदनी का मुख्य स्रोत दूसरे देशों की ट्रेजरी और बॉन्ड्स में निवेश से प्राप्त ब्याज और उसके भंडार में मौजूद सोने की कीमत में बढ़ोतरी हैं। पहले रिजर्व बैंक इससे आपातकाल के लिए संपत्ति निर्मित करता था। अब छह प्रतिशत के आसपास रख कर अपना बाकी सारा मुनाफा उसे केंद्र को देना पड़ता है। केंद्र को इस आय में कोई हिस्सा राज्यों को नहीं देना होता। ठीक उसी तरह जैसे पेट्रोलियम आदि पर उत्पाद शुल्क या उपकर से हुई आमदनी पूरी तरह उसकी जेब में जाती है। हैरतअंगेज है कि आमदनी के दो नए बड़े स्रोत होने के बावजूद केंद्र का राजकोषीय घाटा तय लक्ष्य से काफी ज्यादा रहा है। दूसरी तरफ जन-कल्याणकारी योजनाओं के बजट में लगातार कटौती की गई है। पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने एक समय सवाल उठाया था कि आखिर ये सारा पैसा जा कहां रहा है? यह एक ऐसा सवाल है, जिसका कोई ठोस जवाब आज तक नहीं मिला है।