मुख्य बात यह नहीं है कि लगातार तीन भयंकर हादसे हुए। बात यह है कि ऐसे हादसे हर कुछ दिन में हो रहे हैं, जो एक-दो दिन की सुर्खियों में रहते हैं और फिर उन्हें भुला दिया जाता है। उनसे कोई सबक नहीं सीखा जाता।
दो दिन के अंदर हुए दो बड़े हादसों के शिकार शिशु और कम उम्र बच्चे बने। इसके साथ अगर मुंबई के डोंबिवली के एक केमिकल कारखाने में हुए विस्फोट से मौतों को भी जोड़ दें, तो लगातार तीन दिन आई झकझोरने वाली खबरों का एक सिलसिला नजर आता है। तीनों घटनाओं में समान बात वहां सामने आई नियमों की अनदेखी की कहानियां हैं। गुजरात में राजकोट स्थित गेमिंग जोन में शनिवार को हुए अग्निकांड में मृतकों की संख्या 30 पार कर चुकी है। छुट्टियों के मौसम में गेमिंग जोन के संचालकों ने एंट्री फीस में भारी कटौती की, जिससे वहां भीड़ टूट पड़ी। खबर है कि गेमिंग जोन के अंदर वेल्डिंग का काम कर चल रहा था और उसी जगह कुछ ज्वलनशील पदार्थ रखे हुए थे। इससे भयंकर हादसा हुआ। पुलिस ने कहा है कि गेमिंग जोन में फायर सेफ्टी के पर्याप्त उपाय मौजूद नहीं थे। उधर रविवार को दिल्ली में एक बेबी अस्पताल में लगी आग से दर्जन भर शिशु झुलस गए, जिनमें से कम-से-कम छह की मौत हो गई है।
दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सौरभ भारद्वाज ने इसके बाद एलान किया कि दोषी व्यक्तियों को बख्शा नहीं जाएगा। मगर यह राजकोट पुलिस और दिल्ली प्रशासन दोनों से पूछा जाएगा कि क्या उनके पास फायर सेफ्टी उपायों के निरीक्षण और इसमें कोताही पर संबंधित प्रबंधकों को दंडित करने की कोई चुस्त व्यवस्था नहीं है? दुर्घटना के बाद कार्रवाई या ऐसे एलान उन लोगों के लिए कोई मायने नहीं रखते, जिनके प्रियजन उनसे छिन गए हों। बड़ा सवाल है कि क्या “ईज ऑफ डूइंग बिजनेस” के इस दौर में कारोबारियों को आम सुरक्षा एवं सार्वजनिक परिवास की रक्षा के बुनियादी उपायों में भी लापरवाही बरतने की छूट मिली हुई है? मुख्य बात यह नहीं है कि लगातार तीन भयंकर हादसे हुए। बात यह है कि ऐसे हादसे हर कुछ दिन में हो रहे हैं, जो एक या दो दिन की सुर्खियों में रहते हैं और फिर उन्हें भुला दिया जाता है। यानी उनसे कोई सबक नहीं सीखा जाता। जाहिर है, ऐसे हादसों को टालने के लिए कोई प्रभावी एहतियाती कदम भी नहीं उठाए जाते हैं।