राज्य-शहर ई पेपर व्यूज़- विचार

पक्ष-विपक्ष की बात नहीं

बेहतर होता कि दोनों पक्ष देश की सुरक्षा से जुड़े इस मुद्दे पर दलगत नजरिए से बाहर आकर विचार करते। राहुल गांधी से एक तथ्य की भूल हुई, तो यह भी बेहिचक कहा जाएगा कि सरकार ने अर्धसत्य का सहारा लिया।

लोकसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण के समय विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने अग्निपथ योजना की चर्चा की, तो रक्षा मंत्री ने उन पर गलत तथ्य पेश करने का इल्जाम लगाया। राजनाथ सिंह ने राहुल गांधी के इस दावे को गलत बताया कि लड़ाई के दौरान किसी अग्निवीर के मरने पर उसके परिवार को कुछ नहीं मिलता। सिंह ने कहा कि वैसी स्थिति में अग्निवीर के परिवार को एक करोड़ रुपये दिए जाते हैँ। संभवतः इस बिंदु पर सरकार ने राहुल गांधी को घेर लिया। उसके बाद गांधी ने कहा- ‘आपको यह योजना पसंद है, हमें नहीं है। हमारी सरकार आएगी, तो हम इसे खत्म कर देंगे।’ मगर बेहतर होता कि दोनों पक्ष देश की सुरक्षा से जुड़े इस मुद्दे पर दलगत नजरिए से बाहर आकर विचार करते। राहुल गांधी से एक तथ्य की भूल हुई, तो यह भी बेहिचक कहा जाएगा कि रक्षा मंत्री ने अर्धसत्य का सहारा लिया। दुश्मन से लड़ाई में मरे अग्निवीर के परिवार को एक करोड़ रुपये की एकमुश्त सहायता मिलती है, लेकिन नियमित सैनिक को मिलने वाली बाकी तमाम सुविधाओं से उसका परिवार वंचित रहता है।

सामान्य मौत पर तो अग्निवीर के परिजनों को कुछ नहीं मिलता। लड़ाई में मौत की स्थिति में भी अग्निवीर की विधवा को शहीद की विधवा का दर्जा नहीं मिलता, ना ही ताउम्र इलाज की सुविधा मिलती है। ना पेंशन या कैंटीन आदि जैसी सुविधाएं मिलती हैँ। बहरहाल, सवाल उससे भी बड़ा है। क्या चार साल के सेवा काल वाले अग्निवीरों के भरोसे देश की रक्षा रणनीति पर अमल किया जा सकता है? अमेरिका या ब्रिटेन में भी ऐसी योजना है, यह इस प्रश्न का उत्तर नहीं है। अमेरिका में रक्षा सेवाओं का निजीकरण भी हुआ है, तो क्या सरकार उस मॉडल को भारत में लागू करने पर विचार कर रही है? उच्च प्रति व्यक्ति औसत आय वाले देशों के साथ- जहां सामान्य सामाजिक सुरक्षाएं बेहतर स्थिति में हैं- भारत की तुलना कितनी तार्किक मानी जाएगी? फिर इस तरह की योजनाओं का उन देशों की रक्षा तैयारियों पर क्या असर हुआ है, इस तजुर्बे की चर्चा भी इस संदर्भ में अवश्य होनी चाहिए।

By NI Editorial

The Nayaindia editorial desk offers a platform for thought-provoking opinions, featuring news and articles rooted in the unique perspectives of its authors.

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *